Beggar
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  • वाकई में भगवान का आर्शीवाद ही है इन पर
  • मंदिर बंद, पर भिखारी कायम

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नागपुर. मंदिर बंद है, भक्त गायब हैं. लोगों का आना-जाना बिल्कुल नहीं के बराबर रह गया है. बावजूद इसके मंदिरों के समक्ष भिखारी अपनी-अपनी जगहों पर डटे हुए हैं. इसे सुखद आश्चर्य ही कहा जा सकता है. एक भी भिखारी को न तो कोरोना हुआ और न ही इन्हें खाने की कमी हुई है. एक वर्ष से ऊपर हो गए हैं लेकिन इन्हें बदस्तुर खाना-पानी मिल रहा है और कोरोना दूर-दूर तक भटक नहीं पाया है. इसे चमत्कार ही कहा जा सकता है. चमत्कार इसलिए भी की मंदिरों के आस-पास दिनभर रहने हैं. चेहरे पर मास्क तक नहीं लगाते. न ही स्वच्छा से कोई नाता है. बावजूद इन्हें कोरोना छू तक नहीं पाया है.

10 में से 9 के चेहरे में मास्क तक नहीं रहता. महिला साड़ी से तो पुरुष गमछे से मुंह ढक लेते हैं. अगर मास्क है भी तो पुराने और लटके हुए. लोग खाना तो दे देते हैं, मास्क देना भूल जाते हैं. देखने और दिखने में ये भी भले कमजोर नजर आते हैं. इम्यूनिटी शब्द इनके आस-पास से भी नहीं गुजरती. कोरोना का क्या मजाल की इन्हें टच भी कर सके. भारी रिस्क या खुले आसमान के नीचे इनकी दिनचर्या गुजर रही है लेकिन ये तंदुरुस्त हैं और जीवन चल रहा है. राजा बाक्षा के सामने पहले जितने भिखारी बैठते थे आज भी उतने ही बैठते हैं. बुढ्ढे, बुजुर्ग सभी हैं. कुछ 40-50 के तो कुछ 60 के ऊपर के, चलना भी मुश्किल है. बैठे-बैठे जो मिल गया सो ले लिया. कुछ खाली समय में इधर-उधर चहलकदमी कर लेते हैं. कोरोना से बचाव के लिए कोई भी उपाय इनके पास नहीं है.

फूल का दूकान लगाने वाले कहते हैं, सर देख लो सब मास्क, सैनिटाइजर की बात करते हैं. इनके पास कुछ भी नहीं है. फिर भी ये लोग एक वर्ष से अधिक समय से अपना जीवन काट रहे हैं. न तो कोरोना हुआ और न ही खाने की कमी पड़ी. भले ही मंदिर से भक्त गायब हो गए हो लेकिन ये गेट के सामने डटे हुए है. कई लोग आते हैं खाना दे जाते हैं. इसी से इनकी दिनचर्या चलती रहती है. जब संपूर्ण बंद था तब भी ये लोग यही डटे रहे. रात-बिरात लोग आते थे और खाना और कुछ पैसा दे देते थे. आसपास दूकान लगाने वाले कहते हैं कि कोरोना के पूर्व जितने भिखारी थे, आज भी कमोबेश उतने ही लोग जमे हुए हैं. एक भी भिखारी के मरने या बीमार होने की खबर नहीं आई है. आप ही बताये ये कैसे संभव है. एक ओर जहां लोग मास्क और सैनिटाइजर लेकर घूम रहे हैं, वहीं ये लोग हैं जो भगवान के दरबार में बिंदास बैठे हुए हैं लेकिन कोई बाल बांका भी नहीं कर सका है.

पुराने चेहरे ही दिखते हैं

राजा बाक्षा की तरह ही अन्य मंदिरों के समक्ष बैठने वाले भिखारी आज भी देखे जा सकते हैं. कुछ भिखारियों से बात करने पर उनका कहना है कि साहब खाना लेकर आने वालों की कमी कभी नहीं रही. खाना भरपूर मिल जाता है इसलिए संकटकाल में भी गुजारा हो गया लेकिन नकद देने वाले नहीं रह गए हैं. कुछ लोग थोड़ा बहुत दे जाते हैं लेकिन पहले वाली बात नहीं रही. काम जरूर चल जा रहा है. इतना ही नहीं सामान्य दिनों में लोगों का आना-जाना लगा रहता था जिससे समय भी निकल जाता था. आज टाइम निकालना मुश्किल हो गया है. दिनभर खाली पीली बैठे रहना पड़ता है.