नागपुर. कई जगहों पर अवैध सम्पत्ति की जांच को लेकर भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग की ओर से जारी किए गए नोटिस को चुनौती देते हुए काटोल के पूर्व नगराध्यक्ष चरणसिंह ठाकुर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. इस पर लंबी सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अविनाश घारोटे ने राहत देने से इंकार कर याचिका खारिज कर दी. सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील संजय डोईफोडे ने पैरवी की.
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता के पास बेहिसाब सम्पत्ति होने की शिकायत प्राप्त हुई थी. शिकायत की सत्यता परखने के उद्देश्य से तथा पूछताछ के लिए याचिकाकर्ता को 7 दिनों के भीतर कार्यालय में उपस्थित रहने का नोटिस दिया गया था. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए बताया गया कि जांच एजेन्सी को इस तरह का नोटिस जारी करने तथा पूछताछ करने का अधिकार है.
ACB को अधिकार नहीं
ठाकुर की ओर से पैरवी कर रहे वकील का मानना था कि एसीबी को इस तरह से नोटिस जारी करने का अधिकार ही नहीं है, जबकि सरकारी पक्ष का मानना था कि एसीबी द्वारा शिकायत पर खुली जांच की जा रही है. जांच पूरी तरह प्राथमिक स्तर की है. याचिकाकर्ता ने अवैध मार्गों से भारी सम्पत्ति जमा किए जाने तथा इसमें पारदर्शिता नहीं होने की शिकायत प्राप्त हुई है. ऐसे में प्राथमिक जांच करने का अधिकार है. सरकारी पक्ष का मानना था कि यदि नोटिस देने के बाद संबंधित व्यक्ति उपस्थित नहीं हो रहा हो तो उसके खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति ली जा सकती है.
FIR दर्ज होने तक गिरफ्तारी नहीं
सरकारी पक्ष ने खुलासा किया कि जब तक संज्ञान लेनेवाला मामला दर्ज नहीं किया जाता है, तब तक याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के कदम नहीं उठाए जाएंगे. याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि सुको द्वारा ललिता मामले में जो फैसला दिया है, उसमें एसीबी के मैन्युअल को कानून में किसी तरह की शक्ति प्रदान नहीं की गई है. इसके अलावा कई तरह के दिशानिर्देश भी दिए गए हैं जिनमें प्राथमिक जांच की अनुमति नहीं है. यहां तक कि एफआईआर दर्ज करना भी जरूरी है. यदि शिकायत में संज्ञान लेने जैसा मामला नहीं बनता है तो इसका कोई औचित्य ही नहीं है. लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने याचिका खारिज कर दी.