सरकारी तिजोरी में सन्नाटा, बजट से घटाएंगे घाटा अब चाय-पानी को टा-टा

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, केंद्र सरकार अपने खजाने की खराब हालत देखकर मितव्ययिता या काट-कसर की राह पर चल पड़ी है. उसने सभी मंत्रालयों को निर्देश दिया है कि अपने कार्यालय खर्च में 20 प्रतिशत की कटौती करें.’’ हमने कहा, ‘‘एक बार जैसे रहन-सहन और खर्च करने का स्टैंडर्ड बन जाता है, उससे नीचे कोई कैसे जा सकता है? हमने अपने यहां देखा है कि खर्च लगातार बढ़ता ही है, कम नहीं होता.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम आपके घर की नहीं, सरकार के खर्च की बात कर रहे हैं.

    सरकार ने अपने मंत्रालयों को समझाया है कि आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया वाला रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. वे अनावश्यक स्वागत-सत्कार और चाय-पानी का खर्च नियंत्रित करें. शायद आपको पता नहीं कि हर मंत्रालय का चाय-पानी का बिल हर महीने लाखों रुपए का होता है.’’ हमने कहा, ‘‘आतिथ्य सरकार भारत की परंपरा रही है. कोई आएगा तो क्या उसे चाय के लिए भी नहीं पूछेंगे? वैसे भी नीचे से ऊपर तक चाय-पानी के बिना कोई काम नहीं होता. सरकारी क्लर्क और चपरासी भी चाय-पानी के बिना मानते नहीं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आप रिश्वत रूपी चाय-पानी की ओर संकेत कर रहे हैं. हम मंत्रालयों में कई बार पी जाने वाली चाय-कॉफी, पेस्ट्री-बिस्किट की बात कर रहे हैं.

    आगंतुकों को चाय पिलाने के नाम पर मोटी रकम का हिसाब बता दिया जाता है. सरकार यह खर्च नियंत्रित करना चाहती है. इसके लिए मंत्रालय के गेट पर बोर्ड लगाया जा सकता है कि यहां आने वाले लोग अपने घर से ही चाय-पानी पीकर आएं, यहां कुछ नहीं मिलने वाला! वैसे चाय-पानी के लिए कुछ देने की परंपरा कायम रहेगी.’’ हमने कहा, ‘‘सिर्फ इतना ही नहीं, मंत्रालयों से उनके प्रचार विज्ञापनों पर भी अंकुश लगाने को कहा गया है. अधिकारियों को गैरजरूरी टूर और फील्ड विजिट के लिए भी मना किया गया है. बैठकों को ऑनलाइन करने पर जोर दिया गया है ताकि चाय-पानी का सवाल ही न रहे.’’