कुछ अगाऊ तो कुछ टिकाऊ महंगे दामों पर खिलाड़ी हैं बिकाऊ

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, निशानेबाज, (Nishanebaaz) कुछ लोग टिकाऊ होते हैं तो कुछ बिकाऊ. जो बिकाऊ प्रवृत्ति के होते हैं उनकी कीमत लगाओ और खरीद लो. अब देखिए न, दक्षिण-अफ्रीका का आलराउंडर क्रिकेट क्रिस मॉरिस 16.25 करोड़ रुपए में बिक गया उसे राजस्थान रॉयल्स (Rajasthan Royals) ने खरीदा आईपीएल (IPL) (Indian Premier League) के इतिहास में यह सबसे महंगा खिलाड़ी है.’’ हमने कहा, ‘‘खरीदी-बिक्री तो प्राचीन काल से होती आई है. रोम में गुलामों की नीलामी होती थी. लोग ऊंची आवास में बोली लगाकर हट्टे-कट्टे गुलाम को खरीद लिया करते थे. वे भी तो इंसान थे लेकिन बिकने के लिए मजबूर थे.

    अब फर्क यह आ गया है कि बिकने वाले स्वेच्छा से बिकते हैं. खरीददारों के बोली लगाने से उनका मूल्यांकन हो जाता है. काम के लोग बिक जाते हैं और ऐसे लोग रह जाते हैं जो किसी काम के नहीं रहते. न लीपने के न पोतने के!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज आईपीएल में हर साल देश-विदेश के क्रिकेट खिलाड़ियों (Cricket Player) की नीलामी होती है. उनकी आतिथी बल्लेबाज, विकेट चटखाने वाली तूफानी गेंदबाजी उनका यूएसपी या यूनिक सेलिंग पॉइंट होता है. इसी के आधार पर बोली लगती है. जो सबसे अधिक दाम लगाए, वह अपने साथ उस खिलाड़ी को ले जाए. हाथी, घोड़े, भेड़, बकरी के समान प्लेयर भी खरीदे जाने लगे हैं.’’ हमने कहा, कुछ भी हो, आईपीएल का कुछ अलग ही रोमांच होता है. सिर्फ 20 ओवर में धुआंधार गेंदबाजी विस्फोटक बल्लेबाजी और चमत्कारी फील्डिंग देखने को मिलती है. टेस्ट मैच जैसा धीमापन यहां नहीं होता.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, क्या कोई खिलाड़ी ऐसा स्वाभिमानी या खुद्दार नहीं है जो घोषित करे कि मैं बिकाऊ नहीं हूं.’’ हमने कहा, ‘‘यह अर्थ प्रधान युग है जिसका मूल सिद्धांत है- बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया. नामी खिलाड़ी सिर्फ खेल से ही नहीं बल्कि विज्ञापनों और बड़ी कंपनियों के प्रोडक्ट्स के एंडोर्समेंट से करोड़ों रुपए की कमाई करते हैं. वे अपने कमर्शियल वैल्यू को पूरी तरह समझते हैं. उसी व्यक्ति की कीमत है जो अपने हुनर को खुद तक सीमित न रखे बल्कि उसे निस्संकोच बचे.’’