nishanebaaz-Modi's biggest problem, Subramaniam Swamy is the piercing of the house

संगठन की मजबूती के लिए जरूरी है कि बगैर किसी शंका के नेता के संकेतों पर चला जाए.

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, बीजेपी अनुशासन वाली पार्टी है जहां कोई चूं-चपड़ नहीं कर सकता. उसके सदस्यों को मर्यादा में रहना पड़ता है, फिर चाहे वे मंत्री हों या सामान्य कार्यकर्ता. इनमें से अधिकांश पर संघ के संस्कार रहते हैं जहां आदेश पालन करना सिखाया जाता है और सवाल पूछने की अनुमति नहीं रहती. संगठन की मजबूती के लिए जरूरी है कि बगैर किसी शंका के नेता के संकेतों पर चला जाए. इतना सब होने पर भी बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने चीन को लेकर मोदी सरकार की नीति पर सवाल उठाया है.

    उनका सरकार से सवाल है कि जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी भारत की सीमा में घुसी ही नहीं तो अब उसकी वापसी की बात कैसे की जा रही है? स्वामी ने ट्वीट किया कि पहले विदेश मंत्रालय ने कहा था कि चीनी सेना कभी एलएसी पार कर भारतीय क्षेत्र में नहीं आई थी. अब उसका कहना है कि चीनी सेना ने भारतीय इलाके से वापसी शुरू कर दी है, यह सरकार की बड़ी कूटनीतिक और सैन्य जीत है. क्या यह दोनों बातें एक साथ हो सकती हैं?’’ हमने कहा, ‘‘जब बीजेपी के इतने मंत्री और सांसद कुछ नहीं बोल रहे हैं तो स्वामी ऐसा सवाल उठाने वाले कौन होते हैं. उन्हें मौन रहकर सरकार का समर्थन करना चाहिए.

    कहा गया है- मौनं सम्मति लक्षणं! बीजेपी सांसद होकर भी वे अपनी ही सरकार में खोट निकाल रहे हैं और विपक्ष का काम आसान कर रहे हैं. स्वामी ने कहा कि देपसांग पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है जबकि पैंगोंग लेक पर हम अपनी स्थिति से पीछे हटे हैं. राहुल गांधी ने भी ऐसा ही आरोप सरकार पर लगाया था और अब यही बात स्वामी बोल रहे हैं. अपनी ही सरकार की फजीहत करना क्या अच्छी बात है?’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, स्वामी गुड़ भरे हंसिये के समान हैं जिसे उगल या निगल नहीं सकते. यदि उन्हें पार्टी से निकाला तो और भी खतरनाक हो जाएंगे और पार्टी को बुरी तरह घेरेंगे. उन्हें साथ में रखो तो भी चिमटियां लेते रहते हैं.

    स्वामी को बीजेपी ने इसलिए राज्यसभा सांसद बनाया था कि वे सोनिया और राहुल गांधी को नेशनल हेराल्ड के मुद्दे पर घेरते रहें लेकिन वे दुधारी तलवार के समान मोदी सरकार को भी आहत कर रहे हैं. उन्हें इतना आक्रोश किसलिए है?’’ हमने कहा, ‘‘मोदी ने स्वामी की विद्वत्ता के बावजूद उन्हें मंत्रिमंडल में नहीं लिया. पहले अरुण जेटली और फिर निर्मला सीतारमन को वित्त मंत्री बनाया लेकिन स्वामी को पूछा तक नहीं. ऐसा लगता है कि मोदी सबको संभाल सकते हैं लेकिन बड़बोले स्वामी को नहीं!’’