बड़े-बड़ों की नहीं सुनती सरकार फिर कैसे लेगी आम आदमी की सलाह

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज (Nishanebaaz), केंद्र की मोदी सरकार कितनी लोकतांत्रिक और जनता की कद्र करनेवाली है. उसने देश के बजट में आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है. आप लोग भी बजट बनाने या उसमें सुधार करने को लेकर केंद्र को परामर्श दे सकते हैं. इसके लिए लोगों को मायगॉव वेबसाइट (MyGov website) पर जाकर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा.’’ हमने कहा, ‘‘आम आदमी अपनी मामूली सी आय में घर का बजट ही ठीक से नहीं बना पाता तो देश का बजट बनाने के बारे में सलाह कैसे देगा? क्या वित्त मंत्रालय के अधिकारी रिजर्व बैंक के गवर्नर, (Governor of Reserve Bank) नीति आयोग के विशेषज्ञ तथा देश के इकोनामिक व फाइनांशियल एक्सपर्ट छुट्टी पर चले गए हैं जो आम लोगों से बजट बनाने की सलाह मांगी जा रही है?

किसी सामान्य आदमी को बजट में सिर्फ महंगा-सस्ता समझता है. इसके अलावा वह देखता है कि इनकम टैक्स में कितनी रियायत दी गई है. आम आदमी को मॉनेटरी पॉलिसी, डेफिसिट फाइनांसिंग, लिक्विडिटी, स्टिमुलस पैकेज, रैपोरेट, जीडीपी ग्रोथ, एलोकेशन, सब्सिडी, बूस्टर डोज, टैक्स हॉलिडे, क्रेडिट नोट, कोर सेक्टर जैसे कितने ही शब्दों का अर्थ भी मालूम नहीं है. वह सरकार या वित्त मंत्री को क्या सलाह देगा?’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जनता के बीच अर्थशास्त्र के जानकार, टैक्स कंसल्टेंट, सीए, कंपनी सेक्रेटरी, उद्योगपति जैसे लोग भी मौजूद हैं. वे सरकार को बजट बनाने के बारे में कुछ नया आइडिया दे सकते हैं.

यदि वित्त मंत्रालय या संबंधित विभाग को किसी आम आदमी का आइडिया, सुझाव व्यवहारिक लगता है तो वित्त मंत्रालय उस व्यक्ति को आमंत्रित कर इस बारे में चर्चा करेगा. पहली बार ऐसी पहल की जा रही है कि सरकार बजट बनाने के बारे में जनता की राय ले रही है.’’ हमने कहा, ‘‘सरकार बड़े-बड़ों की नहीं सुनती तो आम आदमी की सलाह क्या लेगी! सरकार हमेशा अपने मन से चलती है. वह विपक्ष के अर्थशास्त्रियों की भी अनसुनी कर देती है. अपने से असहमत विशेषज्ञों की सलाह सिरे से ठुकरा देती है. बड़ी कंपनियों के सीईओ या उद्योग जगत की बड़ी हस्तियों की दाल भी सरकार के सामने नहीं गलती. रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके रघुराम राजन को भी अपने पद से हटना पड़ा. इसलिए आम जनता की सलाह लेना सिर्फ एक दिखावा है. सरकार अपना बजट खुद की मर्जी से ही बनाएगी.’’