आज है ‘कालाष्टमी व्रत’, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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    -सीमा कुमारी 

    हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ महीने में पड़ने वाली ‘कालाष्टमी’ का विशेष महत्व है। जो इस साल 2 जून, यानी अगले बुधवार को है। ‘कालाष्टमी’ (Kalashtami) का पावन दिन शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। हिंदू पंचाग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ‘कालाष्टमी’ मनाई जाती है। इस दिन भगवान भोलनाथ के रुद्र रूप काल भैरव की पूजा अर्चना की जाती है। इसके अलावा इस दिन व्रत भी रखा जाता है।

    मान्यताओं के अनुसार, ‘कालाष्टमी’ के दिन भगवान भैरव की आराधना करने से व्यक्ति भयमुक्त हो जाता है और उसके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती हैं। इसके अलावा भगवान भैरव की पूजा करने से रोगों से भी छुटकारा मिलता है। कुंडली में मौजूद राहु-दोष भी दूर होता है। काल भैरव भगवान के पूजा करने पर भूत-पिचाश, प्रेत और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं अपने आप ही दूर हो जाती है। ऐसे में यह दिन हिन्दू भक्तों के लिए बेहद ख़ास होता है। आइए जानें ‘कालाष्टमी’ का शुभ-मुहूर्त और पूजा विधि –

    शुभ मुहूर्त

    • ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ – 02 जून रात्रि 12 बजकर 46 मिनट से
    • ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त – 03 जून रात्रि 01 बजकर 12 मिनट पर

    पूजा विधि

    मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं और हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प करें। ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करना चाहिए। मंदिर में देवी- देवताओं को स्नान कराएं और आसन लगाकर भगवान भैरव की तस्वीर विराजमान करें।

    यदि भगवान भैरव की तस्वीर न हो तो शिव जी की तस्वीर रखकर पूजा कर सकते हैैं। अब उस पूरे स्थान पर गंगाजल छिड़केँ। अब चौमुखा दीपक जलाकर भगवान भैरव को पुष्प, नारियल, इमरती, पान आदि चीजें अर्पित करें। रात में पुनः सरसों के तेल, जलेबी, उड़द और कले तिल आदि पूजन करें। भैरव मंत्रों और ‘भैरव चालीसा’ का पाठ करें और आरती करें।

    क्या है कालाष्टमी का महत्व?

    शास्त्रों के अनुसार, भगवान काल भैरव सभी प्रकार के कष्टों को दूर करते हैं। ‘कालाष्टमी’ के दिन व्रत रखने और काल भैरव की पूजा करने से भक्तों को किसी भी तरह के भय,रोग, शत्रु और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। साथ ही किसी भी तरह का वाद विवाद, कोर्ट कचहरी के मामलों से छुटकारा पाने में भी भगवान काल भैरव आपकी मदद करते हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने से राहु केतु के बुरे दोष से भी मुक्ति मिलती है। नंदीश्वर भी कहते हैं कि जो शिव भक्त शंकर के भैरव रूप की आराधना नित्य प्रति करता है उसके लाखों जन्मों में किए हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। इनके स्मरण और दर्शन मात्र से ही प्राणी के सब दुःख दूर होकर वह निर्मल हो जाता है।

    मान्यताएं हैं कि इनके भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता। काल भी इनसे भयभीत रहता है। इसलिए इन्हें ‘काल भैरव’ एवं हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें ‘दंडपाणि’ भी कहा जाता है। इनकी पूजा-आराधना से घर में नकारात्मक शक्तियां, जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता बल्कि इनकी उपासना से मनुष्य का आत्मविश्वास बढ़ता है।