-सीमा कुमारी
महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला ‘नारियल पूर्णिमा’ का बड़ा महत्व है। यह त्योहार सावन महीने के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 22 अगस्त, रविवार के दिन है।
‘नारियल पूर्णिमा’ के दिन भक्त निश्चल मन से समुद्र के देवता वरुण भगवान की पूजा करते हैं, और उन्हें नारियल चढ़ाते हैं। ऐसा माना जाता है कि श्रावण पूर्णिमा के शुभ दिन समुद्र के देवता की पूजा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं।
महाराष्ट्र के ब्राह्मण इस दिन ‘श्रावणी उपकर्म अनुष्ठान’ करते हैं। वे इस दिन फलाहार व्रत रखते हैं और व्रत के दौरान केवल नारियल ही खाते हैं। इसलिए, तटीय महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र में, श्रावण पूर्णिमा के दिन को ‘नारियल पूर्णिमा’ के रूप में भी जाना जाता है।
‘नारियल पूर्णिमा’ के दिन लोग प्रकृति के प्रति अपना सम्मान और कृतज्ञता दिखाने के लिए पेड़ लगाते हैं। नारियल पूर्णिमा को ‘नारली पूर्णिमा’ के रूप में भी पुकारा जाता है। आइए जानें नारियाल पूर्णिमा का शुभ मुहर्त और पूजा विधि:
शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि आरंभ
21 अगस्त 2021 को सुबह 08:30 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त-
07:01 पूर्वाह्न 22 अगस्त 2021
पूजा-विधि
त्योहार से कुछ दिन पहले मछुआरे अपने पुराने मछली पकड़ने की जाल की मरम्मत करते हैं। अपनी पुरानी नावों को रंगते हैं या नई नाव खरीदी जाती हैं। मछली पकड़ने की नई जाल बनाई जाती हैं। फिर नावों को रंग-बिरंगे गुच्छों या फूलों की माला से सजाया जाता है।
त्योहार के दिन भक्त समुद्र देवता वरुण की पूजा करते हैं और भगवान से इसकी सुरक्षा और आगे मछली पकड़ने के लिए अच्छे मौसम के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
महाराष्ट्र में ब्राह्मण समुदाय के लोग ‘श्रावणी उपकर्म’ करते हैं और इस दिन बिना किसी प्रकार के अनाज का सेवन किए उपवास रखते हैं। वे दिन भर केवल नारियल खाकर ‘फलाहार’ व्रत रखते हैं।
त्योहार के दिन, पारंपरिक भोजन जिसमें नारियल शामिल होता है, जैसे ‘नाराली भात’ या नारियल चावल तैयार किया जाता है।
समुद्र मछुआरों के लिए पवित्र है, क्योंकि यह उनके जीवित रहने का एक साधन है। वे नावों की पूजा भी करते हैं।
पूजा की रस्में पूरी करने के बाद, मछुआरे अपनी अलंकृत नौका लेकर समुद्र में जाते हैं। एक छोटी यात्रा करने के बाद वे किनारे पर लौट आते हैं और शेष दिन नाच-गाकर बिताते हैं।