Harsh vardhan

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मंत्रियों को कोई भी वक्तव्य भलीभांति सोच समझकर और स्थिति का पूरा जायजा लेकर देना चाहिए वर्ना अपनी बात से पलटने की नौबत आ जाती है. यदि वे ठोक-बजाकर विश्वासपूर्वक कोई बात कहें तो बाद में पीछे हटने और बगलें झांकने की नौबत नहीं आती.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन (Harsh Vardhan) ने पहले तो गत शनिवार को सुबह एलान कर दिया कि कोरोना की वैक्सीन देशभर में फ्री लगाई जाएगी, लेकिन वस्तुस्थिति की जानकारी होने के बाद वे अपनी गलती समझ गए कि भारत की 130 करोड़ की आबादी को मुफ्त में वैक्सीन (COVID-19 Vaccine) लगा पाना कदापि संभव नहीं है. उसी दिन शाम को स्वास्थ्य मंत्री ने यूटर्न ले लिया और अपने ट्वीट में लिखा कि देश में 1 करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों (Corona warriors) और 2 करोड़ कोरोना वारियर्स को मुफ्त वैक्सीन (COVID-19 Vaccine) दी जाएगी. इसी तरह अन्य 27 करोड़ लोगों को टीका लगाने पर विचार किया जा रहा है कि उन्हें टीका किस तरह से लगाया जाएगा. इन 27 करोड़ लोगों को मुफ्त में टीका लगाने का कोई भी इरादा या वादा उन्होंने अपने ट्वीट में जाहिर नहीं किया.

स्वास्थ्य मंत्री के इस रवैये से आशंका उत्पन्न हो गई है कि देश में सभी लोगों को मुफ्त टीका शायद ही लगे. यह सचमुच विचित्र है कि शनिवार को चले वैक्सीन के ड्राई रन या पूर्वाभ्यास के समय दिल्ली के गुरू तेगबहादुर अस्पताल का निरीक्षण दौरा करते समय स्वास्थ्य मंत्री ने एक सवाल के जवाब में बड़े आत्मविश्वास से कहा कि सिर्फ दिल्ली ही नहीं, देश भर में लोगों को कोरोना की वैक्सीन फ्री में मिलेगी लेकिन शाम को वे अपने इस बयान से पलटी खा गए. स्वास्थ्य मंत्री को कोई बड़ा दावा करने से पहले वैक्सीन की मात्रा की उपलब्धता, उस पर आनेवाली लागत, उसे देश के दूरदराज इलाकों तक पहुंचाने और इतनी बड़ी आबादी को मुफ्त दे पाना संभव होगा भी या नहीं, जैसी सारी बातों पर विचार कर लेना चाहिए था. साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडलीय सहयोगियों तथा विशेषज्ञों से भी पर्याप्त चर्चा करने के बाद ही ऐसा कोई बयान देना चाहिए था. अति उत्साह में कुछ बोल जाना और बाद में खंडन करना कदापि शोभा नहीं देता.