आलोचना के बाद कांग्रेस ने अब समझी अन्य नेताओं की महत्ता

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    अभी तक कांग्रेस सिर्फ गांधी परिवार तक सीमित थी लेकिन आलोचना के बाद उसकी आंखें खुल गईं. उसे समझ में आ गया कि उसका यह संकीर्ण और आत्मकेंद्रित रवैया उसके लिए नुकसानदेह व आत्मघाती है. कांग्रेस सिर्फ नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया व उनकी संतानों तक सीमित नहीं है बल्कि उसके विकास में अन्य नेताओं का भी प्रचुर योगदान रहा है. पिछले समय से कुछ बीजेपी नेता कांग्रेस को मां-बेटे की पार्टी कहने लगे थे. परिवारवाद के आरोपों का मौन जवाब देते हुए अब कांग्रेस ने अपना समावेशी स्वरूप दिखाया है. 

    उदयपुर के नवसंकल्प शिविर के अवसर पर एयरपोर्ट से लेकर शहर तक कई जगह ऐसे पोस्टर लगाए गए है जिनमें मनमोहनसिंह के साथ पीवी नरसिंहराव, मौलाना आजाद के साथ डा. आंबेडकर, डा. राजेंद्रप्रसाद के साथ लालबहादुर शास्त्री, गोपालकृष्ण गोखले के साथ भगतसिंह, नेहरू के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल, लाला लाजपतराय के साथ महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर के साथ नेताजी सुभाषचंद्र बोस और सरोजिनी नायडू के चित्र हैं.

    गफलत का खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा

    कांग्रेस ने स्वयं को गांधी परिवार तक केंद्रित कर लिया था. उसकी इसी गफलत की वजह से बीजेपी ने सरदार वल्लभभाई पटेल व सुभाषचंद्र बोस को हाइजैक कर लिया था कांग्रेस ने जिन नेताओं की उपेक्षा की उनसे बीजेपी निकटता दिखाती चली गई. जिन सरदार पटेल ने केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में गांधी हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगाया था, उन्ही की विशाल प्रतिमा स्टेच्यू आफ यूनिटी के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने स्थापित करवाई. इसी तरह नेताजी सुभाषचंद्र बोस व आंबेडकर से भी बीजेपी निकटता दिखाने लगी थी. इसलिए अब कांग्रेस को समझ में आया कि पुराने नेता उसके लिए कितनी अहमियत रखते है. पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और नरसिंहराव को कांग्रेस ने मजबूरी में याद किया अन्यथा वह इन्हें भूला-बिसरा मान चुकी थी. 

    उल्लेखनीय है कि नरसिंहराव के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली से हैदराबाद भेजने में जल्दबाजी दिखाई गई थी. क्रांतिकारी भगतसिंह की कांग्रेस से कोई वैचारिक साम्यता नहीं थी लेकिन जब आम आदमी पार्टी शहीदे आजम भगत सिंह को अपने साथ जोड़ने में लगी है तो कांग्रेस भी क्यों पीछे रहे? डा. आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच मतभेद थे. कांग्रेस ने डा. आंबेडकर के मुकाबले जगजीवनराम का कद बढ़ाने की कोशिश की थी. अब कांग्रेस को डा. आंबेडकर का भी पोस्टर लगाना पड़ा ताकि पिछड़े वर्ग उसमें जुड़ सके. सुभाषचंद्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे लेकिन महात्मा गांधी उनके चुनाव से प्रसन्न नहीं थे. बापू की समर्थक कांग्रेस कार्यकारिणी ने जब सहयोग देने से इनकार किया तो सुभाषबाबू को कांग्रेस छोड़कर फारवर्ड ब्लाक बनाना पड़ा था.

    समावेशी रवैया अपनाना जरूरी हो गया

    अब कांग्रेस को गांधी परिवार से इतर स्वाधीनता सेनानियों व अन्य नेताओं के योगदान को स्वीकार करना जरूरी हो गया. इसीलिए उसने पोस्टर में उनका समावेश किया. आमतौर पर कांग्रेस के शिविरों व अधिवेशनों में महात्मा गांधी व नेहरू के साथ गांधी परिवार को पोस्टरों में स्थान दिया जाता रहा है लेकिन इस बार अन्य भूले बिसरे नेताओं को कांग्रेस ने तवज्जो दी. महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरू गोपालकृष्ण गोखले का पोस्टर भी लगाया गया. प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद और सरोजिनी नायडू को भी याद किया गया. कांग्रेस के ध्यान में आ गया कि गांधी परिवार की चौखट से बाहर निकलकर उसे व्यापक आयाम बनाने होंगे.