गठबंधन है सिर्फ मतलब का, अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता

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लोग जिसे चुनावी गठबंधन (Electoral Alliance) समझते हैं, वह ‘मतलब की यारी’ रहता है। उसकी जड़ में सिद्धांत नहीं, बल्कि स्वार्थ होता है। जनता के सामने अपनी एकजुटता का नाटक करनेवाले नेताओं का मकसद होता है- अपना उल्लू सीधा करना। सब अपनी- अपनी ताक में रहते हैं कि अधिकतम फायदा हासिल करें या सत्ता के केक की सबसे बड़ी स्लाइस अपने मुंह में डालें।  

अब गठबंधन की कलई खुलती जा रही है। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार नाराज हैं कि महाविकास आघाड़ी के घटक दल कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) मनमानी कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे की पार्टी ने राज्य की 17 लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया। जब सीनियर पवार से अपना भतीजा ही नहीं संभल पाया तो गठबंधन कैसे संभलेगा? अभी तो फ्री फॉर ऑल चल रहा है। सभी पार्टियां दूसरी की परवाह न करते हुए मौके पर चौका मारने में लगी हैं। अनुशासन और एकजुटता का भ्रम टूट गया
है।
 
नेताओं का रवैया यही है कि अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता ! शरद पवार का साथ छोड़कर अजीत पवार गुट में गए छगन भुजबल अड़ गए हैं कि उन्हें या उनके भतीजे समीर भुजबल को नाशिक से टिकट दिया जाए। उन्होंने धमकी दी है कि नामांकन नहीं मिला तो दूसरे विकल्प पर विचार कर सकता हूं। दूसरा विकल्प अर्थात बीजेपी ! उधर कांग्रेस नेता संजय निरुपम का अरमान था कि मुंबई उत्तर-पश्चिम से चुनाव लड़ेंगे लेकिन उद्धव बालासाहब ठाकरे (यूबीटी) ने अमोल कीर्तिकर को वहां से उम्मीदवार घोषित कर दिया। निरुपम ने नाराजगी से कहा कि मैं किसी भी कीमत पर ‘खिचड़ी चोर’ का प्रचार नहीं करूंगा।  

उल्लेखनीय है कि ईडी ने खिचड़ी घोटाले में कीर्तिकर को समन भेजा है। ऐसे माहौल में अपनी उपेक्षा से तिलमिलाए नेता या तो बगावत करते हुए पाटी बदल सकते हैं या फिर जिसे टिकट मिला, उसे हराने की साजिश कर सकते हैं। विपक्षी गठबंधन में खटपट तो चल ही रही है लेकिन युति के घटक दल भी बीजेपी के वर्चस्व के कारण मन ही मन नाराज हैं।