त्रिसदस्यीय समिति के निर्णय से EC की नियुक्ति

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मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में केंद्र सरकार का वर्चस्व तोड़कर इस प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसके मुताबिक अब सिर्फ राष्ट्रपति इन पदों के लिए नियुक्ति नहीं करेंगे. न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षतावाली 5 जजों की संविधान पीठ ने एक सर्वसम्मत फैसले में कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की समिति की सलाह पर राष्ट्रपति करेंगे. यदि लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं है तो उस स्थिति में सबसे बड़ी पार्टी का नेता मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाली समिति में होगा. यह नियम तब तक कायम रहेगा जब तक इस मुद्दे पर संसद कानून नहीं बना देती.

यह फैसला केंद्र सरकार को अपनी मर्जी से किसी को भी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त बनाने से रोकेगा. इन पदों की चयन प्रक्रिया में विपक्ष के नेता और सीजेआई को भी शामिल करना पड़ेगा. न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्या. अनिरुद्ध बोस, न्या. हृषिकेश राय और न्या. सीटी रविकुमार की पीठ ने यह कहते हुए कि लोकतंत्र आतंतरिक रूप से जनाकांक्षा या लोगों की इच्छा से जुड़ा हुआ है, चुनाव प्रक्रिया में शुचिता पर बल दिया. न्यायमूर्ती रस्तोगी ने यद्यपि न्यायमूर्ति जोसेफ द्वारा लिखित मुख्य निर्णय से सहमति व्यक्त की लेकिन साथ ही अपने तर्कों के साथ एक अलग फैसला सुनाया.

चुनाव आयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण गाइडलाइन देते हुए कहा कि उसे संवैधानिक ढांचे और कानून के दायरे में काम करना चाहिए. वह अनुचित तरीके से काम नहीं कर सकता. लोकतंत्र का आधार ‘कानून का शासन’ है. सिर्फ जुबानी तौर पर कानून के शासन की बात करना पर्याप्त नहीं है. इसके लिए चुनाव आयोग को अपनी स्वतंत्र और निष्पक्ष भूमिका सुनिश्चित करनी होगी. लोकतंत्र में चुनाव पूरी तरह निष्पक्ष होना चाहिए. इसकी शुद्धता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है.

यदि शुचिता नहीं रखी गई तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे. सुप्रीम कोर्ट को इस तरह की चेतावनी क्यों देनी पड़ी, यह भी विचारणीय है. एक स्वायत्त निकाय के रूप में चुनाव आयोग वैसा प्रभावशाली नहीं रह गया जैसा कि टी.एन. शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त रहते समय था. शेषन ने चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था और व्यापक सुधार किए थे.

कानून की किताबों में दबे प्रावधानों का बेधड़क इस्तेमाल किया था. उन्होंने आदर्श आचार संहिता लागू करवाई थी और उम्मीदवारों के लिए चुनाव खर्च का हिसाब देना अनिवार्य किया था. निर्वाचन के दौरान सरकारी मशीनरी मुख्य चुनाव आयुक्त के नियंत्रण में रहती थी ताकि राजनेता हस्तक्षेप न करने पाएं. चुनाव में धांधली व फर्जी मतदान रोकने के लिए उन्होंने कठोर कदम उठाए थे तथा संवेदनशील चुनाव क्षेत्रों में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती सुनिश्चित करवाई थी.

शेषन कभी भी सरकार या राजनेताओं के सामने दबे नहीं थे. उनके इस रवैये की वजह से ही सरकार ने चुनाव आयोग को त्रिसदस्यीय बना दिया था. सुप्रीम कोर्ट का संकेत स्पष्ट है कि चुनाव आयोग सरकार के प्रत्यक्ष या परोक्ष निर्देशों पर आंख मूंदकर न चले, सत्तापक्ष की सुविधा देखते हुए काम न करे. स्वायत्त निकाय के रूप में उसकी प्रतिबद्धता सिर्फ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की होनी चाहिए.