Army is the only surveyor in Pakistan, the option of hanging or exile in front of Imran Khan

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घास के ढेर से सुई खोजी जा सकती है लेकिन पाकिस्तान रूपी कबाड़ में लोकतंत्र के अवशेष खोज पाना मुश्किल है. वहां जब भी कोई निर्वाचित सरकार का अंकुर फूटता है, फौजी बूट उसे बेरहमी से रौंद डालते हैं. पाकिस्तान की आर्मी के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को 2 विकल्प दिए हैं. सेना ने कहा है कि या तो आप हमेशा के लिए राजनीति छोड़ दो या फिर मौत की सजा के लिए तैयार हो जाओ. यह कोई खोखली धमकी नहीं है क्योंकि पहले भी पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक ने सारी अपीलें ठुकराकर मुल्क के प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया था. ऐसा है पाकिस्तान का अंधा कानून जिसकी सूत्रधार है वहां की आर्मी. उसके सामने किसी कोर्ट-कचहरी का वजूद नहीं है.

पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट भी वहां की आर्मी के सामने बौना साबित होता है. पाकिस्तान में या तो इस्कंदर मिर्जा, अयूब खान, याह्या खान, जिया उल हक या परवेज मुशर्रफ जैसे जनरल तानाशाही सरकार चलाते आए हैं या फिर ऐसी कठपुतली निर्वाचित सरकारें जिनकी डोर आर्मी के हाथों में रही है. जहां भारत में लोकतंत्र फला-फूला, वहीं पाकिस्तान की जमीन उसके लिए बंजर साबित हुई. किसी नेता की लोकप्रियता फौज की आंखों की किरकिरी बन जाती है. अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देशों ने भी पाकिस्तान के फौजी शासकों को हमेशा समर्थन दिया था बल्कि पश्चिमी राष्ट्रों ने पाक को भरपूर आर्थिक व शस्त्रों की मदद मुहैया कराई थी. पहले कहा भी जाता था कि पाकिस्तान को कोई यदि चलाता है तो अल्लाह, आर्मी और अमेरिका!

अब अमेरिका की जगह चीन ने पाकिस्तान के आका की भूमिका संभाल ली है. पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ भी निर्वासित होकर पाकिस्तान लौटी थी तो चुनाव रैली के दौरान बम धमाकों में उन्हें जान गंवानी पड़ी थी. नवाज शरीफ तो मुशर्रफ की कैद में ही दम तोड़ देते लेकिन संयुक्त अरब अमीरात ने हस्तक्षेप किया तो नवाज शरीफ निर्वासित होकर दुबई और फिर लंदन में रहने लगे. अब उनकी पाकिस्तान वापसी की उम्मीद की जा रही है. फिलहाल इमरान खान के सामने यही विकल्प सही रहेगा कि मौत की सजा की बजाय राजनीति छोड़कर निर्वासन स्वीकार कर लें. अटक जेल में कैद इमरान की बुरी हालत है. उन्हें सभी सुविधाओं से वंचित कर खूंखार कैदियों के बीच रखा गया है. इमरान को तोशाखाना मामले में 3 साल की सजा और 5 साल चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया गया है. राजनीति छोड़ देंगे तो कम से कम जान तो बच जाएगी क्योंकि आर्मी ने एक्शन लिया तो इमरान को बचाएगा कौन? उनके समर्थक भी ठंडे पड़ चुके हैं.

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीसी) ने अपने देश के क्रिकेट इतिहास की जो पुस्तक जारी की है, उसमें फजल महमूद, जावेद मियांदाद, वकार यूनुस, बाबर आजम शहिद अफ्रीदी वगैरह तमाम खिलाड़ियों के नाम हैं लेकिन पाकिस्तान को विश्वकप क्रिकेट में जीत दिलानेवाले इमरान खान का कोई उल्लेख नहीं है. अपने एक नामी पूर्व कप्तान का उल्लेख न करना दिखाता है कि पाकिस्तान का क्रिकेट बोर्ड भी फौज से कितना डरा हुआ है. राजनीति में आने के पहले भी इमरान खान विभिन्न कारणों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते थे. क्रिकेट कप्तान होने के अलावा प्लेब्वाय के रूप में भी उनकी पहचान थी. ब्रिटिश सांसद लार्ड गोल्डस्मिथ की बेटी जेमिमा से इमरान की शादी हुई थी. बाद में जेमिमा तलाक लेकर लंदन वापस चली गई. बुशरा बेगम इमरान खान की तीसरी बीवी हैं. पाकिस्तान में 3 माह के भीतर चुनाव होने वाले हैं. शायद इसे लेकर आर्मी और नवुाज शरीफ के बीच कोई डील हुई होगी. अभी पाक में कार्यवाहक सरकार है. अपने छोटे भाई शहवाज शरीफ की बजाय नवाज शरीफ ज्यादा प्रभावी और उपयोगी हो सकते हैं तभी तो उनकी वापसी के आसार हैं. इन सारी हलचलों के पीछे आर्मी का ही हाथ है.