बोर्ड ने ऑनलाइन की मांग ठुकराई, ऑफलाइन परीक्षा पर सरकार सख्त

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    महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा मंडल ने छात्रों की ऑनलाइन परीक्षा लेने की मांग ठुकराते हुए 10वीं और 12वीं की परीक्षा को ऑफलाइन कराने का सख्त फैसला लिया है. अब छात्रों को स्कूल जाकर परीक्षा देनी होगी. कोरोना संक्रमण न होने पाए, इसलिए हर वर्ष की तुलना में 4 गुना ज्यादा परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं तथा एक क्लासरूम में सिर्फ 25 विद्यार्थियों के ही बैठने की व्यवस्था होगी. पिछले समय महामारी को देखते हुए ऑनलाइन परीक्षा लेने की बाध्यता थी लेकिन ऐसे में परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में आ जाती है.

    घर बैठे परीक्षा देने वाला छात्र अपने पास 2 मोबाइल रखता था और नेट पर उत्तर खोज लेता था. अच्छी तरह विषय को समझकर पढ़ाई करने और अपनी याददाश्त के मुताबिक परीक्षा देने जैसी बात ऑनलाइन परीक्षा में नहीं होती. उसमें बच्चे शॉर्टकट अपनाते हैं, इसलिए उनकी क्षमता और योग्यता परखने के लिए ऑफलाइन परीक्षा ही उचित और प्रामाणिक है.

    हाल ही में राज्य के अनेक शहरों में ऑफलाइन परीक्षा का विरोध करते हुए हजारों छात्र सड़कों पर आ गए थे. इस आंदोलन के सूत्रधार हिंदुस्तानी भाऊ को गिरफ्तार कर लिया गया. यह आंदोलन अनपेक्षित था और पुलिस को भी इसकी भनक नहीं लग पाई थी. छात्रों की दिक्कतें समझी जा सकती हैं लेकिन ऑनलाइन परीक्षा हर वर्ष तो नहीं ली जा सकती. इसमें शैक्षणिक स्तर और छात्रों के ज्ञान का ठीक तरह पता नहीं चल सकता. इसकी क्या गारंटी है कि विद्यार्थी किताब अलग रखकर या मोबाइल में उत्तर सर्च किए बगैर ईमानदारी से परीक्षा देगा और चीटिंग नहीं करेगा!

    शिक्षा में गंभीरता नहीं रही

    पिछले 2 वर्षों से शिक्षा के साथ खिलवाड़ होता रहा. ऑनलाइन पढ़ाई विद्यार्थियों के लिए थी या शिक्षकों की नौकरी और वेतन जारी रखने के लिए? छात्र ऑनलाइन पढ़ाई को क्लासरूम पढ़ाई के समान गंभीरता से लेते दिखाई नहीं दिए. ऐसे में इनकी कितनी ज्ञान वृद्धि हुई होगी? सामान्य रूप से जैसी प्रतिस्पर्धा रहती है, वह भी नहीं हुई होगी. एक सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र के केवल 27 प्रतिशत पालकों के पास स्मार्टफोन है इसलिए वहां के 73 प्रतिशत छात्र ऑनलाइन शिक्षा से वंचित रहे.

    दूरदराज के क्षेत्रों में नेटवर्क नहीं मिलने की समस्या भी शिक्षा में बाधक रही. ऑनलाइन 8वीं, 9वीं की परीक्षा देकर पास हुए विद्यार्थी अब 10वीं में हैं. ऐसी ही स्थिति 12वीं के छात्रों की भी है. यह 2 वर्ष छात्रों और उनके पालकों के लिए संवेदनशील रहे.

    पिछले 2 वर्षों से छात्र-छात्राओं को लिखने की आदत छूट गई. इन सभी वजहों से विद्यार्थियों के मन में ऑफलाइन परीक्षा को लेकर तनाव आना स्वाभाविक है. ऑफलाइन परीक्षा लेने से परीक्षा प्रणाली में गंभीरता आ जाएगी. बोर्ड ने लिखित परीक्षा 75 प्रतिशत पाठ्यक्रम के आधार पर लेना तय किया है. कोर्स में 25 प्रतिशत कमी करने से शिक्षकों के पास पढ़ाने और छात्रों के पास पढ़ने का पर्याप्त समय होगा. प्रैक्टिकल परीक्षा 40 प्रतिशत पाठ्यक्रम पर आधारित होगी.

    इंटर्नल और एक्सटर्नल परीक्षक संबंधित स्कूलों के ही होंगे. कोरोना को देखते हुए छात्रों को उनके ही स्कूल में परीक्षा देने की छूट बोर्ड ने दी है. बोर्ड ने मुख्याध्यापकों और विषय विशेषज्ञों के साथ परामर्श के बाद ऑफलाइन परीक्षा का फैसला लिया है. इसमें 40 से 60 अंक के पेपर के लिए 15 मिनट तथा 70 से 100 अंक के लिए 30 मिनट का अतिरिक्त वक्त दिया जाएगा तथा सुबह और दोपहर के 2 सत्रों में परीक्षा ली जाएगी.