पैसा लौटाने की भगोड़े कारोबारियों की पेशकश, सुप्रीम कोर्ट ने दिया देशवापसी का सुझाव

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    यदि कोई कारोबारी बैंकों का कर्ज अदा न करते हुए विदेश भाग जाए तो सरकार सीबीआई जैसी एजेंसियों को उसे पकड़कर लाने की जिम्मेदारी सौंपती है. विदेश की सरकार से भी उस कारोबारी को भारत के हवाले करने के लिए कहा जाता है. ऐसा करने के बाद भी वर्षों बीत जाते हैं और कोई सफलता नहीं मिलती. वह कारोबारी विदेश में रहकर कानूनी लड़ाई लड़ता और अपनी वापसी टालता रहता है.

    इसके बाद यदि ऐसा कारोबारी रकम का भुगतान कर स्वदेश लौटना चाहे तो क्या उसे मौका नहीं दिया जाना चाहिए? देश की अर्थव्यवस्था के विकास में कारोबारियों का योगदान होता है. व्यवसाय में जोखिम के चलते वे कर्ज का भुगतान नहीं कर पाते और विदेश चले जाते हैं. लेकिन यदि वे डूबा हुआ पैसा लौटाने को तत्पर हैं तो क्यों न उन्हें राहत दी जाए?

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजयकिशन कौल और न्या. एमएम सुंदरेश की पीठ ने बहुत सार्थक, तर्कसंगत और सही परामर्श केंद्र सरकार को दिया है कि यदि विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे भगोड़े कारोबारी स्वयं ही पैसे का भुगतान करने को तैयार हैं तो क्यों न उन्हें भारत लौटने देने और उनके खिलाफ चल रही कानूनी कार्यवाहियों को रोकने पर विचार किया जाए? वास्तविकता पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सरकार से कहा कि आप इतने वर्षों से दुनिया भर में कई लोगों का पीछा कर रहे हैं लेकिन कुछ भी हासिल नहीं कर पाए. यहां ऐसे लोग पैसा वापस करने की पेशकश कर रहे हैं, इसलिए कुछ आपराधिक कार्यवाहियों पर रोक लगाते हुए उन्हें वापस आने की अनुमति दी जा सकती है.

    न्यायाधीशों ने कहा कि इन भगोड़े व्यावसायियों पर कानूनी कार्यवाही में कई वर्ष लगेंगे और सरकारी एजेंसियां इन्हें स्वदेश वापस लाने के प्रयास में सफल हो भी सकती हैं और नहीं भी! ऐसी अनिश्चितता के बीच यदि भगोड़े कारोबारी पैसे लौटाने पर सहमत हैं तो सरकार उन्हें सुरक्षा प्रदान कर सकती है. साथ ही इस बात पर विचार किया जा सकता है कि देशवापसी पर उनकी गिरफ्तारी न हो. सुप्रीम कोर्ट का यह व्यावसायिक सुझाव हेमंत एस हथी की याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया जो स्टर्लिंग समूह के प्रमोटरों के साथ बैंक कर्ज के माध्यम से कथित तौर पर 14,500 करोड़ रुपए की हेराफेरी करने के आरोप में वांछित है.

    संदेसरा बंधुओं का मामला

    स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड के प्रमोटर चेतन जयंतीलाल संदेसरा और नितिन संदेसरा भी सीबीआई द्वारा मामला दर्ज करने के बाद 2018 में देश छोड़कर नाइजीरिया भाग गए थे. उनके खिलाफ लगभग 1,500 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का मामला दर्ज है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि अगर संदेसरा बंधु 900 करोड़ रुपए जमा कर दें तो क्या उनके खिलाफ दर्ज मामले खत्म किए जा सकते हैं? अदालत के सामने पेश अपनी याचिका में संदेसरा बंधुओं ने कहा कि सीबीआई ने अपने आरोप पत्र में धोखाधड़ी की राशि को 1500 करोड़ रुपए रखा जिसमें से 600 करोड़ रुपए पहले ही बैंकों को चुकाए जा चुके हैं. संदेसरा भाइयों ने 3 महीने के भीतर बकाया रकम का भुगतान करने की पेशकश की है जो कि 900 करोड़ रुपए से अधिक है.

    अदालत की व्यावहारिक सीख

    न्यायमूर्ति एसके कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार बगैर किसी धन की वसूली किए विश्व भर में कई भगोड़ों का असफल रूप से पीछा कर रही है. ऐसे में यदि कोई आरोपी पर्याप्त रकम चुकाने के लिए तैयार है तो उस पर विचार किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि आखिरकार ये पैसे से जुड़े मामले हैं, यह शारीरिक चोट से जुड़े अपराध नहीं हैं. सरकार को पुनर्भुगतान के ऐसे प्रस्तावों को सकारात्मक रूप से देखना चाहिए.

    सीधी बात है कि अगर पैसे वापस करके कुछ कार्यवाही समाप्त की जा सकती है तो बिना पैसे लिए सब कुछ जारी रखने पर क्यों जोर दिया जाए? अदालत ने सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि जब आपको पर्याप्त राशि मिल रही है तो ऐसा कुछ होना चाहिए जिसमें आप सेटलमेंट कर केस समाप्त करने के लिए तैयार हों.