Britain accepted the theft of Kohinoor

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आखिर अंग्रेजों ने वर्षों बाद स्वीकार किया कि वे चोर हैं. ब्रिटेन ने माना कि उसकी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के आजाद होने के बहुत पहले अनमोल और एतिहासिक ‘कोहिनूर’ हीरा जबरन ले गई थी. यह हीरा महाराजा रणजीत सिंह के पास था. 1849 में सिखों व अंग्रेजों के बीच युद्ध के बाद सिखों का शासन खत्म हो गया. महाराज दिलीप सिंह की अन्य संपत्तियों के साथ कोहिनूर हीरा भी ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया. डच फर्म कोस्टर ने इसे 38 दिनों तक तराशा और फिर महारानी के ताज में जड़ दिया. 1947 में भारत आजाद होने के बाद से इस दुर्लभ हीरे पर अपना दावा करता आ रहा है. 2,000 में भारतीय संसद ने कोहिनूर वापस लाने की मांग की तो ब्रिटिश अधिकारियों ने कहा कि इस हीरे पर कई देश दावा कर रहे हैं. ऐसे में इसके असली मालिक की पहचान करना संभव नहीं है लिहाजा इसे ब्रिटेन में ही रखा जाएगा. यह तथ्य है कि कोहिनूर हीरा करीब 800 वर्ष पहले आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले की गोलकुडा की खदान से निकाला गया था जिसे कई बार तराशा गया. अब भी यह दुनिया का सबसे बड़ा तराशा हुआ हीरा है. अनधिकृत रूप से इस हीरे का आकलन 1 अरब डॉलर (800 करोड़ रुपए) की कीमत के आसपास है. यह कीमत दुनिया के किसी भी हीरे की कीमत से बहुत ज्यादा है. खदान से निकलने के बाद यह हीरा काकतीय राजवंश ने अपनी कुलदेवी भद्रकाली की ‘बायी’ आंख में लगाया था. फिर यह अलाउद्दीन खिलजी और पानीपत युद्ध के बाद बाबर के पास गया. ईरानी लुटेरे नादिर शाह ने इसे दिल्ली के मुगल बादशाह मोहम्मद शाह से छीन लिया. इसके बाद अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी और फिर पंजाब के सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुंचा था.