निंदनीय परीक्षा घोटाला, मगरमच्छों पर कड़ी कार्रवाई हो

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    यदि रिश्वत लेकर ही सरकारी नौकरी दी जाती है तो उसके लिए परीक्षा का आंसर क्यों होना चाहिए? यह कितना बड़ा भ्रष्टाचार है कि महाराष्ट्र में स्वास्थ्य सेवा भर्ती और म्हाडा की परीक्षा के साथ-साथ शिक्षक पात्रता परीक्षा का प्रश्नपत्र भी लीक हो गया. इस मामले में बड़े-बड़ों की गिरफ्तारी हो रही है. यह तो ऐसा मामला है कि बाड़ ही खेत को खा रही है. जिन सरकारी विभागों में पात्रता के आधार पर जांच-परखकर योग्य उम्मीदवारों को नौकरी दी जानी चाहिए, वहां मोटी रकम लेकर अयोग्य लोगों की भर्ती की जा रही है. 

    सरकारी नौकरियां पाने का स्वप्न देखने वाले लाखों युवक-युवती परिश्रमपूर्वक परीक्षा की तैयारी करते हैं. मोटी फीस देकर कोचिंग भी लेते हैं. ग्रामीण क्षेत्र के गरीब होनहार युवक भी सोचते हैं कि सरकारी नौकरी मिल जाए तो उनके अभावग्रस्त परिवार को सहारा मिले. ऐसे युवा शिक्षक भर्ती, पुलिस भर्ती या अन्य विभागों में नौकरी पाने के उत्सुक रहते हैं. उनकी इस मजबूरी का फायदा उठाने वालों की कमी नहीं है. वरिष्ठ अधिकारियों तक यह भ्रष्टाचार जा पहुंचा है जिसे नेस्तनाबूत करने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे.

    स्वास्थ्य सेवा, म्हाडा व शिक्षक परीक्षा में धांधली

    कुछ माह पूर्व स्वास्थ्य सेवा भर्ती का पेपर फूट जाने से राज्य भर में खलबली मच गई थी. तब सरकार की ओर से दावा किया गया था कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. इसके बाद पुणे पुलिस ने जांच की तो पता चला कि म्हाडा का पेपर भी लीक हुआ है. इसकी वजह से परीक्षा रद्द करनी पड़ी. फिर बताया गया कि इन सारी परीक्षाओं को खुद न लेते हुए सरकारी विभागों ने इनकी आउटसोर्सिंग की है. तब संबंधित संस्था के संचालक को पकड़ा गया. भ्रष्टाचार का सिलसिला यहीं नहीं रुका, इसके बाद शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) मंडल के वर्तमान आयुक्त तुकाराम सुपे और पूर्व आयुक्त सुखदेव डेरे को गिरफ्तार किया गया. 

    उनके घर से 4.50 करोड़ रुपए नकद और कई किलो सोना बरामद किया गया है. पुलिस की साइबर और आर्थिक अपराध शाखा के अनुसार 2020 की शिक्षक पात्रता परीक्षा में कथित गड़बड़ी के मामले में जारी जांच के दौरान मिली जानकारियों के आधार पर पुलिस ने सुखदेव डेरे को हिरासत में लिया. अब इनकी कारगुजारी सामने आने लगी है. ऐसा बताया जाता है कि परीक्षा देने वाले युवाओं से 35,000 से 1 लाख रुपए लेकर उनकी उत्तरपत्रिकाओं में फेरबदल कर दिया जाता था. यह सारा मामला पुलिस की कार्रवाई से सामने आया. 

    बीजेपी की मांग है कि सरकारी नौकरी की परीक्षाओं में ऐसे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच सीबीआई को सौंप देनी चाहिए. लेकिन ऐसी मांग में राजनीति अधिक है. लगभग 1 दशक पूर्व मध्यप्रदेश में भी व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) का घोटाला काफी चर्चित हुआ था. उसमें एक के बाद एक प्रकरण सामने आने पर उसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. देखा जाता है कि ऐसे मामलों में छुटभैये पकड़े जाते हैं और बड़े शातिर खिलाड़ी बच जाते हैं.

    गुजरात व यूपी में भी पेपर फूटे थे

    गत वर्ष देश भर में पेपर फूटने के कम से कम 7 मामले सामने आए थे. इनमें 3 महाराष्ट्र के तथा गुजरात व उत्तरप्रदेश के 1-1 प्रकरण थे. गुजरात में राज्य सहायक सेवा चयन मंडल की ओर से 186 क्लर्कों की भर्ती के लिए परीक्षा ली गई थी, जिसका पेपर फूटा था. यूपी की शिक्षक भर्ती परीक्षा में भी ऐसा ही कांड हुआ था. सितंबर में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नीट) का पेपर भी सोशल मीडिया पर लीक हो गया था. यदि महाराष्ट्र के स्वास्थ्य, सेवा, म्हाडा व शिक्षक पात्रता परीक्षा के पेपर फूट प्रकरण में चपरासी और क्लर्क से लेकर आयुक्त तक सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो यह सिस्टम या व्यवस्था का बहुत बड़ा दोष है. 

    इसे हर हालत में सुधारना होगा वरना सरकारी नौकरियों में अयोग्य लोग घुसते चले जाएंगे और प्रशासन निकम्मा होकर रह जाएगा. नौकरी के इच्छुक युवा भी परीक्षा में सफल होने के लिए शॉर्टकट अपनाना छोड़ दें. सरकारी नौकरियां अत्यंत सीमित हैं. गिनी-चुनी नौकरियों के लिए हजारों युवा कोशिश करते हैं, जिसका लाभ ऐसे भ्रष्टाचारी तत्व उठाते हैं. महाराष्ट्र की छवि ऐसे लोगों से कलंकित हो रही है. सरकार दोषियों पर सख्त कार्रवाई करे और उन्हें सजा दिलवाए. व्यवस्था में आमूल चूल सुधार होना ही चाहिए.