कांग्रेस हाईकमांड सच में सो रहा, एक के बाद एक नेता छोड़ रहे पार्टी

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    पहले ही संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस का खेमा लगातार उजड़ता चला जा रहा है. नेतृत्व के सामने कहीं ऐसी स्थिति न आ जाए कि कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे! युवा व क्षमतावान नेता एक के बाद एक पार्टी छोड़ते जा रहे हैं लेकिन हाईकमांड को कोई चिंता नहीं है. ऐसी बेफिक्री बहुत महंगी पड़ेगी. पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, फिर जितिन प्रसाद और अब सुष्मिता देव ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया. क्या अगला नंबर सचिन पायलट का लग सकता है? कांग्रेस छोड़ने वाले तो यही मान रहे हैं कि पार्टी के तिलों में अब तेल बाकी नहीं रह गया है. देश की जनता को विस्मय है कि 136 वर्ष पुरानी कांग्रेस अपना घर क्यों नहीं संभाल पा रही है? उसका कुनबा क्यों बिखर रहा है? क्या पार्टी के शीर्ष नेता रूठों को मनाना और असंतुष्टों को तसल्ली देना भूल गए हैं या इसकी जरूरत ही नहीं समझते? ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसलिए कांग्रेस छोड़ी क्योंकि मध्यप्रदेश की राजनीति में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने उनकी उपेक्षा की. सोनिया गांधी और राहुल ने भी सिंधिया को न्याय नहीं दिया.

    यदि सिंधिया को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष या उपमुख्यमंत्री का पद देने की उदारता कांग्रेस दिखाती तो वे अपने साथी विधायकों के साथ बीजेपी में नहीं जाते और मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार कायम रहती. इसके बाद जितिन प्रसाद जैसे युवा नेता कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चले गए. बीजेपी को जितिन प्रसाद के रूप में यूपी की राजनीति में एक ब्राम्हण चेहरा मिल गया. इसके बाद पीसी चाको ने भी कांग्रेस छोड़ दी. सचिन पायलट भी बीजेपी में चले जाते अगर उनके वफादार विधायकों में फूट न पड़ गई होती. यह माना गया कि राहुल गांधी अपने साथी युवा नेताओं को इंसाफ नहीं दिला पाए. आखिर इसके पीछे कौन सी मजबूरी थी?

    TMC ने सुष्मिता देव को खींच लिया

    कांग्रेस को अंदाजा भी नहीं लग पाया और टीएमसी ने उसके पैरों तले से कालीन खींच लिया. तात्पर्य यह है कि आल इंडिया महिला कांग्रेस की अध्यक्ष और असम के सिलचर से पूर्व सांसद सुष्मिता देव ने अचानक कांग्रेस छोड़ दी और टीएमसी में शामिल हो गईं. लगता है टीएमसी प्रमुख व बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की हालिया दिल्ली यात्रा के समय ही कुछ खिचड़ी पकी होगी और कांग्रेस को इसकी भनक तक नहीं लग पाई. बताया जाता है कि सीएए या नागरिकता कानून पर कांग्रेस के रुख से वे असंतुष्ट थीं. सुष्मिता पार्टी का युवा चेहरा थीं. उनका इस्तीफा राहुल और प्रियंका गांधी के लिए चेतावनी है जो अपने युवा साथियों को संभाल नहीं पा रहे हैं. टीएमसी सुष्मिता देव की मदद से पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में अपने विस्तार की योजना बना रही है जिसमें सबसे पहले उसकी नजर असम और त्रिपुरा पर है. सुष्मिता के पिता संतोष मोहन देव केंद्र सरकार में लंबे समय तक मंत्री थे तथा उनकी मां बिथिका देव भी विधायक रही हैं.

    नई पीढ़ी के नेताओं की पूछ-परख नहीं

    कांग्रेस के जी-23 गुट के नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि युवा नेता कांग्रेस छोड़ रहे हैं और हमारे जैसे बुजुर्ग नेता पार्टी को बचाने की कोशिशों में लगे हैं. वैसे वास्तविकता यह है कि नेताओं की नई पीढ़ी को लगता है कि पार्टी में उनकी पूछ-परख या अवसर नहीं है. कांग्रेस में पुरानी पीढ़ी गांधी-नेहरू परिवार से निकटता की वजह से संगठन में जमी हुई है. कांग्रेस ने पहले भी नेताओं को छिटकने से नहीं रोका. जगनमोहन रेड्डी की कांग्रेस ने उपेक्षा की थी तो उन्होंने अपनी वाईएसआर कांग्रेस बना ली और अब आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. इसी तरह हिमंत बिस्वा सरमा को 2 दिन दिल्ली रुकने पर भी कांग्रेस हाईकमांड ने मिलने का समय नहीं दिया था तो वे बीजेपी में शामिल हो गए और अब असम के सीएम हैं. इन कर्मठ नेताओं को खो देने के लिए कांग्रेस स्वयं जिम्मेदार है.

    आर्थिक संकट से जूझती पार्टी

    कांग्रेस सत्ता से दूर रहने और चंदे में कमी आने की वजह से आर्थिक संकट झेल रही है. पार्टी कोषाध्यक्ष पवन बंसल ने कहा कि वे एक-एक रुपया बचाने की कोशिश में लगे हैं. कांग्रेस ने अपने सांसदों से हर साल पार्टी फंड में 50,000 रुपए देने को कहा है. उनसे हवाई यात्रा के लिए पार्टी फंड की बजाय सांसद के रूप में अपने हवाई यात्रा के लाभ का उपयोग करने को कहा गया है. चुनावी बांड आ जाने पर ज्यादा फायदा बीजेपी को हुआ है जबकि कांग्रेस को पार्टी फंड में भारी नुकसान उठाना पड़ा है. गत वर्ष की तुलना में उसमें 17 प्रतिशत की कमी हुई है.