कसबा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत BJP को कड़वा घूंट पीना पड़ा

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महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस सरकार तथा आरएसएस का इतना प्रभाव होने के बावजूद बीजेपी का गढ़ कही जानेवाली कसबा सीट जीतकर कांग्रेस ने अपना दमाम दिखा दिया. यह वही सीट है जहां से बीजेपी नेता गिरीश बापट 5 बार और मुक्ता तिलक ने एक बार चुनाव जीता था. कसबा में बीजेपी की हार पार्टी के लिए किसी आघात से कम नहीं है. इसके लिए खुद बीजेपी की अदूरदर्शिता जिम्मेदार है. मुक्ता तिलक के निधन से यह सीट रिक्त हुई थी. वहां उन्हीं के किसी परिजन को उम्मीदवारी न देते हुए बीजेपी ने हेमंत रासने को प्रत्याशी बनाया था जिन्हें कांग्रेस के रवींद्र धंगेकर ने 10,951 मतों से हराया.

तिलक के परिवार के किसी व्यक्ति को प्रत्याशी न बनाने की वजह से क्षेत्र में पहले ही कसबा में बीजेपी के खिलाफ माहौल बना हुआ था. इस वातावरण को अनुकूल बनाने के लिए बीजेपी ने स्थानीय देवस्थान प्रमुख, संघ के कार्यकर्ता, राज्य भर के बीजेपी नेताओं के कसबा में रहनेवाले रिश्तेदारों व परिचितों का सहयोग लिया. इस सीट को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए स्वयं डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने वहां डेरा जमाया और सारे साधनों का इस्तेमाल किया.

यहां तक कि छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी कसबा आए थे लेकिन इतनी खटपट करनने के बावजूद बीजेपी के हाथों से यह सीट कांग्रेस ने लगभग 30 वर्ष बाद छीन ली. तीसरी बार विधानसभा चुनाव लड़े रवींद्र धंगेकर पहली बार किस्मत आजमा रहे बीजेपी के हेमंत रासने पर भारी पड़े. इस क्षेत्र में बहुलता रखनेवाले ब्राम्हण मतदाताओं की नाराजगी भी भीजेपी के खिलाफ गई. महाराष्ट्र के 2 उपचुनावों में बीजेपी की नीति का विरोधाभास स्पष्ट नजर आया. कसबा में कुक्ता तिलक के परिजन को उम्मीदवारी नहीं दी लेकिन पिंपरी-चिंचवड में बीजेपी ने लक्ष्मण जगताप की पत्नी को प्रत्याशी बनाया.

यह क्षेत्र एनसीपी छोड़कर बीजेपी में आए लक्ष्मण जगताप का गढ़ रहा है. पिंपरी चिंचवड में एनसीपी के अधिकृत उम्मीदवार और बागी उम्मीदवार के बीच वोट बंट गए. इसका फायदा बीजेपी को मिला. यदि महाविकास आघाड़ी की तीनों पार्टियां वहां एकजुट रहती तो पिंपरी-चिंचवड में भी बीजेपी को लोहे के चने चबाने पड़ते. यह बात सही है कि एक जीत या एक हार से राज्य का सत्ता समीकरण नहीं बदलता परंतु इस उपचुनाव का असर राज्य सरकार की महानगर पालिका चुनाव कराने की निर्णय क्षमता पर पड़ सकता है.

राज्य के पुणे, पिंपरी-चिंचवड, ठाणे, नागपुर सहित दर्जन भर शहरों के महापालिका चुनाव किसी न किसी वजह से अटके हुए हैं गत वर्ष अंधेरी विधानसभा उपचुनाव से बीजेपी ऐन मौके पर पीछे हट गई थी. बाद में नागपुर, अमरावती शिक्षक व स्नातक मतदाता क्षेत्र मं पराजय और अब कसबा में बीजेपी की हार से समझ में आता है कि मनपा चुनाव क्यों टाले जा रहे हैं. यदि राज्य में महाविकास आघाड़ी की तीनों पार्टियां एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करे तो कांटे की टक्कर हो सकती है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को दिखाना होगा कि वे ठाणे शहर के बाहर भी अपना प्रभाव रखते हैं तभी वे बीजेपी की कुछ मदद कर पाएंगे.