भारी पड़ेगी लद्दाख से वादाखिलाफी 

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राज्य का दर्जा और विधानसभा की मांग
   
बीजेपी (BJP) ने 2019 में लद्दाखवासियों से जो वादे किए थे, उन्हें निभाने से कतरा रही है। केंद्र सरकार ने लद्दाख (Ladakh) के पर्यावरण, उसकी आदिवासी देशज संस्कृति को सुरक्षित रखने तथा वहां के लोगों को लोकतांत्रिक अधिकार देने का वादा किया था। लेह में अनशन कर रहे जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuck) का आरोप है कि बीजेपी सिर्फ चुनावों के बारे में सोचती है कि वह कितनी सीटें जीत सकती है लेकिन हम लोगों के बारे में भूल जाती है। ऐसा लगता है कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश इसलिए घोषित किया गया है ताकि औद्योगिक लॉबी और खदान कंपनियों को हमारे पहाड़ बेच दिए जाएं। लद्दाख पर केवल चीन ही नजरें गड़ाए नहीं बैठा है, बल्कि उसके नाजुक इकोसिस्टम पर औद्योगिक व खदान लॉबियों का भी खतरा मंडरा रहा है।
 
सोनम वांगचुक इन्हीं का विरोध कर रहे हैं और साथ ही इस केंद्र शासित प्रदेश के लिए संवैधानिक सुरक्षा की भी मांग कर रहे हैं, इसलिए वह पिछले 21 दिनों से आमरण अनशन पर हैं। उनके साथ लगभग 250 व्यक्ति भी माइनस 12 डिग्री सेल्सियस तापमान की कड़कती ठंड में भूखे सो रहे हैं और वह भी खुले आसमान के नीचे ताकि भारत सरकार को याद दिला सकें कि वह अपना वादा पूरा करे। इंजीनियर, शिक्षाविद, समाजसेवी व एक्टिविस्ट वांगचुक के अनुसार, केंद्र की बीजेपी सरकार भारत को ‘लोकतंत्र की मां’ कहना पसंद करती है, लेकिन अगर भारत लद्दाख के लोगों को लोकतांत्रिक अधिकार देने से इंकार करता है तो उसे सिर्फ लोकतंत्र की सौतेली मां कहा जा सकता है। लद्दाख की राजधानी लेह की ठंडी सड़कों पर धोखे, वादाखिलाफी व गुस्से का एहसास स्पष्ट देखा जा सकता है।

6 मार्च से लगातार जारी है विरोध प्रदर्शन

वांगचुक का यह विरोध प्रदर्शन लेह में 6 मार्च से आरंभ हुआ, तब उन्होंने घोषणा की कि उनका विरोध प्रदर्शन 21 21 दिनों के चरणों में आयोजित किया जाएगा। 5 2019 को धारा-370 निरस्त किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 बनाया गया था और लद्दाख को ‘बिना विधानसभा के’ अलग केंद्र शासित प्रदेश की मान्यता दी गई, – थी। जबकि दिल्ली व पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की अगस्त अपनी अपनी विधानसभाएं हैं, लद्दाख 59,146 वर्ग किमी में फैला हुआ है। लद्दाख को धारा-370 के तहत जो विशेष संवैधानिक दर्जा प्राप्त था, उसे भी समाप्त कर दिया गया है।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की तरह लद्दाख की अपनी विधानसभा नहीं है, लेकिन उसके पास चुनी हुई दो पहाड़ी परिषदें हैं- लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल कारगिल (एलएएचडीसी) और एलएएचडीसी-लेह। इस क्षेत्र के प्रशासनिक कार्यों का भार इन्हीं दो परिषदों पर है।   

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पिछले दो वर्षों के दौरान लेह व कारगिल के दोनों सामाजिक- राजनीतिक गठबंधन (लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस) सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं कि बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा अर्थहीन है। दोनों जिलों ने हाथ मिलाकर यह मांग करते हुए जबरदस्त अभियान छेड़ा है कि उन्हें राज्य का दर्जा बहाल करने के साथ ही विधानसभा दी जाए। सर्वसम्मति से संविधान के छठे शेड्यूल और अनुच्छेद-371 के तहत विशेष दर्जे की भी मांग है जैसा कि मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम व अन्य उत्तरपूर्व के राज्यों को प्राप्त है।

लद्दाख के लोगों का तर्क है कि अगर इस क्षेत्र को बाहर के लोगों व बाहर के निवेश के लिए खोल दिया जाएगा तो इससे इकोलॉजिकली अति नाजुक व संवेदनशील क्षेत्रों पर कुप्रभाव पड़ेगा। लद्दाख में गिलगिट- बाल्टिस्तान को मिलाकर क्षेत्रीय नियंत्रण विस्तार को मांग भी साथ में की जा रही है। 1947 से पहले गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र भी लद्दाख जिले का ही हिस्सा था, लेकिन अब यह क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है। उक्त दोनों संगठनों ने केंद्र सरकार को जो मेमोरेंडम सौंपा है, उसमें कहा गया है कि केंद्र गिलगिट-बाल्टिस्तान को लद्दाख में मिलाने का हर संभव प्रयास करे।