चिंतन शिविर में लिए गए निर्णयों पर कितना अमल, सुविधाभोगी कांग्रेसी जनसंपर्क कर पाएंगे?

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    कांग्रेस का ग्राफ 2014 के बाद से लगातार नीचे जा रहा था. तब से 8 वर्षों बाद उदयपुर के चिंतन शिविर में पार्टी को नई ऊर्जा देने के लिहाज से अनेक फैसले किए गए. इन निर्णयों पर कितना अमल होगा? कांग्रेसियों से पसीना बहाने को कहा गया है. आगामी 2 अक्टूबर को गांधी जयंती से कांग्रेस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत करने जा रही है जो देश में सामाजिक सदभाव बढ़ाने के लिए होगी. सभी युवा इस यात्रा में शामिल होंगे तथा सीनियर नेता सहयोग करेंगे. प्रश्न उठता है कि सुख-सुविधा के नशे में चूर कांग्रेसी क्या सही में जनसंपर्क कर पाएंगे? 

    कांग्रेस नेतृत्व ने इतना तो समझ ही लिया कि जनता से उसका संपर्क टूट गया है. उसके नेता और कार्यकर्ता आत्मकेंद्रित हो गए हैं, इसी वजह से सत्ता उसकी मुट्ठी से रेत के समान फिसलती चली जा रही है. 2014 में केंद्र से सत्ता छिन जाने के बाद अब कांग्रेस केवल 2 राज्यों- छत्तीसगढ़ और राजस्थान तक सीमित रह गई है. वहां भी अगले वर्ष चुनाव होने वाले हैं. महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस की सरकार में भागीदारी है. यूपी में अनेक वर्षों तक कांग्रेस की हुकूमत थी लेकिन अब वहां कुछ सीटें भी जीतना उसके लिए पहाड़ खोदने जैसा काम हो गया है. देश में बुरी तरह उखड़ चुकी पार्टी को नवजीवन देना चिंतन शिविर का लक्ष्य है लेकिन इसके लिए अत्यंत परिश्रम और समर्पण की आवश्यकता है.

    उदयपुर डिक्लेरेशन के मुताबिक चलेगी पार्टी

    कांग्रेस को सबसे बड़ी चिंता 2024 के लोकसभा चुनाव की है जिसके लिए क्विक रिस्पांस वाले फैसले लेकर काम शुरू होगा. उदयपुर डिक्लेरेशन के आधार पर पार्टी आगे बढ़ेगी. सोशल इंजीनियरिंग से लेकर पार्टी में कामकाज का तरीका इसी आधार पर तय होगा. कांग्रेस वर्किंग कमेटी का एडवाइजरी ग्रुप बनेगा जो समय-समय पर बैठकें लेकर सुझाव देगा. राहुल गांधी ने जनता से रिश्ता मजबूत बनाने की बात कही है जो दिखाता है कि कांग्रेस ने जनता का भरोसा खो दिया है. 

    अक्टूबर में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकालने का ऐलान भी जनता से जुड़ने की कवायद का हिस्सा है. राहुल का यह कथन कि हमें पसीना बहाना होगा, उन कांग्रेस नेताओं को सीधा संदेश है जो एसी में बैठकर बयानबाजी के जरिए पार्टी चला रहे हैं. राहुल ने कम्युनिकेशन स्किल (संचार कौशल) सुधारने पर जोर दिया. बीजेपी के डिजिटल तौर-तरीके के साथ तालमेल करने में अभी तक कांग्रेस पूरी तरह पीछे है. यही वजह है कि राहुल चाहते हैं कि कांग्रेस नेता नए जमाने के कम्युनिकेशन स्किल के साथ चलें.

    कुछ उल्लेखनीय निर्णय

    चिंतन शिविर में एक बात तो यह तय हुई कि ‘वन फैमिली वन टिकट’, अर्थात एक परिवार से एक ही सदस्य चुनाव लड़ सकेगा. दूसरी बात यह कि कांग्रेस नेताओं को राज्यसभा में 2 से अधिक कार्यकाल नहीं दिया जाएगा. एआईसीसी के ब्लॉक और जिला स्तर पर भी नेताओं का कार्यकाल तय किया जाएगा. 3 वर्ष का कार्यकाल हो जाने पर नेता को अपना पद छोड़कर दूसरे को मौका देना होगा. एआईसीसी व स्टेट जनरल बोर्ड की मीटिंग हर 5 वर्ष में बुलाए जाने का प्रस्ताव है.

    पिछड़ों को प्रतिनिधित्व

    कांग्रेस पिछड़े वर्गों को जोड़ने के संबंध में गंभीर है. पार्टी अपने संगठन में हर स्तर पर एससी, एसटी, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकती है. इसके लिए सामाजिक सलाहकार परिषद बनाई जाएगी. इसे लेकर चर्चा की गई कि कौन से संगठनात्मक सुधार करने चाहिए ताकि पार्टी कमजोर तबकों को संदेश दे सके. सलमान खुर्शीद, दिग्विजय सिंह और कुमारी शैलजा ने जातिगत जनगणना की मांग की. इसके साथ ही विधानमंडलों में पिछड़े वर्गों के कोटे सहित महिला आरक्षण की मांग की.