भारत-कनाडा टकराव चरम पर ट्रूडो पर PM पद छोड़ने का दबाव

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भारत और कनाडा अभूतपूर्व कूटनीतिक संकट से जूझ रहे हैं जिसके लिए कनाडा सरकार जिम्मेदार है. भारत ने कनाडा से आनेवाले लोगों के लिए वीजा पर रोक लगा दी है. इस कदम से पंजाब में बेचैनी देखी जा रही है. शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष मुखबीर सिंह बादल ने कहा कि बड़ी तादाद में पंजाबी कनाडा में रहते हैं और दोनों देशों के बीच खराब होते रिश्तों की वजह से उनमें घबराहट है. अगर रिश्ते और खराब होते हैं तो उनके परिजन स्वदेश कैसे आएंगे? दूसरी ओर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि कनाडा आतंकियों के लिए पनाहगाह नहीं बन सकता. कनाडा में 5.26 प्रतिशत अनिवासी भारतीय रहते हैं. 2022 में विदेश में पढ़नेवाले भारतीय छात्रों की संख्या 13,29,954 थी जिनमें से 13 फीसदी अर्थात 1,83,310 छात्र कनाडा में पढ़ रहे थे. कनाडा में चौथी बड़ी संख्या में पर्यटक भारत आते हैं.

कट्टरपंथियों का प्रभाव

कनाडा की कुल जनसंख्या में सिखों की तादाद भले ही 2.1 प्रतिशत हो, लेकिन इस समुदाय में जो मुट्ठीभर कट्टरपंथी तत्व हैं उन्होंने कनाडा की राजनीति में अपनी संख्या की तुलना से बहुत अधिक प्रभाव हासिल किया हुआ है. कनाडा के प्रान्तों जैसे ब्रिटिश कोलंबिया में वह सिख मतों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस तथ्य से यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि जस्टिन ट्रूडो भारत पर निज्जर की हत्या का क्यों आरोप लगा रहे हैं, जिसे भारत ने ‘बेतुका’ व ‘प्रेरित’ कहकर ठुकरा दिया है.

गौरतलब है कि हाल के दिनों में जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता में कमी आयी है- इस अगस्त के अंत में हुई रायशुमारी में 56 प्रतिशत कनाडा के नागरिकों ने कहा कि उन्हें अपना पद छोड़ देना चाहिए. जस्टिन ट्रूडो अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्हें अपनी सियासी किस्मत बदलने के लिए एक मुद्दा चाहिए. भारत को अपने स्टैंड पर मजबूती से कायम रहना चाहिए और जस्टिन ट्रूडो पर छोड़ देना चाहिए कि वह निज्जर मामले में कितनी दूर तक जाना चाहते हैं.

ऐसा प्रतीत होता है कि निज्जर को लेकर जस्टिन ट्रूडो ने सेल्फ-गोल कर लिया है या करने जा रहे हैं. फाइव आईज इंटेलिजेंस अलायंस (अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व कनाडा) ने कनाडा के आरोपों को ‘गंभीर’ तो कहा है, लेकिन निज्जर की हत्या की निंदा करने हेतु संयुक्त सार्वजनिक वक्तव्य जारी करने के कनाडा के आग्रह को मानने से इंकार कर दिया है.

मसलन, ब्रिटेन ने कहा कि वह आरोपों को गंभीरता से ले रहा है, लेकिन ‘पहले की तरह’ भारत से अपना व्यापार तालमेल जारी रखेगा. संयुक्त सार्वजनिक वक्तव्य के जरिये कनाडा भारत को उन देशों की सूची में शामिल कराना चाहता था, जो अपने ‘राजनीतिक विरोधियों की विदेशों में हत्या कराते’ हैं. इसलिए जस्टिन ट्रूडो के पूर्व सलाहकार जोसीलिन कौलोन ने निज्जर की हत्या की तुलना पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या से की. सउदी अरब ने 2018 में तुर्की में अपने दूतावास में जमाल की हत्या करा दी थी.

यह तुलना बहुत ही बेतुकी है. जमाल सिर्फ विद्रोही पत्रकार थे, वह किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं थे और न ही किसी आतंकी गुट के सदस्य थे. सीसीटीवी फुटेज व ऑडियो रिकॉर्डिंग्स के रूप में उनकी हत्या के साक्ष्य मौजूद हैं.

दूसरी ओर 26-वर्ष पहले ‘रवि शर्मा’ के फेक पासपोर्ट पर कनाडा में राजनीतिक शरण लेने वाला प्लम्बर निज्जर बब्बर खालसा इंटरनेशनल का सदस्य रहा और अन्य आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के अतिरिक्त उसने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे जगतार सिंह तारा को आर्थिक मदद पहुंचायी. कनाडा की शुरुआती जांच में निज्जर की हत्या आपसी दुश्मनी का परिणाम थी, जिसे अब राजनयिक रंग देकर जस्टिन ट्रूडो खतरनाक खेल खेल रहे हैं.