महिला आरक्षण लागू होने पर हमेशा के लिए बदल जायेगी सियासत

Loading

– वीना गौतम

सारे षड्यंत्रों को धता बताते हुए अंततः महिला आरक्षण विधेयक 20 सितंबर 2023 को लोकसभा में बहुत शान से पास हो गया. राज्यसभा में शायद ही ओवैसी जैसा इतिहास के रुख को न समझने वाला कोई हठी सांसद सामने आये. आये भी तो फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि इस बिल को लेकर देश की सबसे बड़ी दो सियासी पार्टियां एक साथ हैं.

एक बार यह विधेयक कानून बन जाय फिर रातोंरात सियासत के सारे समीकरण बदल जायेंगे. मंडल कमीशन को लेकर भी शुरू में निराशाजनक कयास लगाए गए थे, लेकिन अंतत मंडल कमीशन ने भारतीय राजनीति का समूचा चेहरा ही बदलकर रख दिया. महिला आरक्षण क़ानून इससे भी कहीं ज्यादा परिवर्तनकारी साबित होगा. यह आरक्षण भारतीय राजनीति के मौजूदा चरित्र को ही बदलकर रख देगा. लोकसभा में 456 सांसदों की मौजूदगी में से 454 ने इसके पक्ष में वोट दिया. यह 99.5 फीसदी का समर्थन बताता है कि इसकी ताकत को हर कोई बहुत गहरे तक समझता है.  संसद में नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल को लेकर हुई बहस भी बताती है कि कोई भी इसका खुल्लमखुल्ला विरोध नहीं कर रहा.

सभी विपक्षी दलों का साथ

लेकिन ओवैसी ने भले इस विधेयक को चुनावी स्टंट बताया हो लेकिन सदन में कांग्रेस, सपा, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने इसके पक्ष में मत किया है. लोकसभा में इस बिल के पास होने के पहले 60 सांसदों ने अपने विचार रखे थे. विपक्षी सांसदों ने इसकी जमकर आलोचना की राहुल गांधी ने कहा, ‘ओबीसी आरक्षण के बिना यह बिल अधूरा है.’ जबकि अमित शाह ने कहा,‘यह आरक्षण सामान्य,एससी और एसटी में समान रूप से लागू होगा. चुनाव के बाद तुरंत ही जनगणना और डिलिमिटेशन का काम होगा जिससे महिलाओं की भागीदारी जल्द ही सदन में बढ़ेगी मतलब लोकसभा में 2029 के बाद.’ गृहमंत्री ने यह भी कहा कि ‘विरोध करने से रिजर्वेशन जल्दी नहीं आएगा.’

महिला आरक्षण बिल युग बदलने वाला विधेयक है. देश में एससी-एसटी के लिए जितनी सीटें आरक्षित हैं, उनमें से भी 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोगों के लिए महिला सशक्तीकरण चुनाव जीतने का मुद्दा हो सकता है, लेकिन मेरी पार्टी और मेरे नेता मोदी के लिए यह मुद्दा राजनीति नहीं, बल्कि मान्यता का मुद्दा है. मोदी ने ही भाजपा में महिलाओं को पार्टी पदों पर 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाया.

काफी इंतजार करना पड़ा

बहस के दौरान सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि पहली बार ये संविधान संशोधन नहीं आया. देवेगौड़ा से लेकर मनमोहन सिंह तक चार बार प्रयास हुए. लेकिन पास नहीं हुआ, क्या मंशा अधूरी थी? प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के समय 12 सितंबर 1996 को संविधान संशोधन आया.

जब 11वीं लोकसभा आयी तो विधेयक लैप्स हो गया. इसके बाद 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी के समय बिल आया, लेकिन फिर लैप्स हो गया. 13वीं लोकसभा में अटल जी के समय फिर बिल आया, लेकिन अनुच्छेद 107 के तहत बिल निरस्त  हो गया. इसके बाद मनमोहन सिंह बिल लेकर आए, लेकिन फिर विलोपित हो गया. वास्तव लोकसभा जब विघटित हो जाती है तो लंबित विधेयक विलोपित हो जाते हैं.

शाह से पहले राहुल गांधी ने कहा कि मैं महिला आरक्षण बिल के समर्थन में हूं, लेकिन ये अधूरा है. उन्होंने बहस में यह बात भी जोड़ दी कि जब सांसदों को पुरानी संसद से नई संसद में ले जाया जा रहा था तो राष्ट्रपति को मौजूद होना चाहिए था. इसी बात के चलते ओबीसी वाली बात भी सामने आयी जिसमें राहुल ने कहा कहा कि हमारे इंस्टीट्यूशंस में ओबीसी की भागीदारी कम है, मैंने इसकी रिसर्च की है. सरकार चलाने वाले जो 90 सेक्रेटरी हैं, उनमें से सिर्फ तीन ओबीसी हैं. यह ओबीसी समाज का अपमान है उन्होंने जोर देकर कहा महिला आरक्षण बिल पर बिल्कुल भी देरी नहीं करना चाहिए, इसे आज से ही लागू कर देना चाहिए. महिला आरक्षण पर टीएमसी कांग्रेस की सांसद  महुआ मित्रा ने कहा, ‘मुस्लिम महिलाओं को भी इसका फायदा मिले.’ इस पर स्मृति ईरानी ने  कहा- धर्म के आधार पर रिजर्वेशन नहीं. बाद कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी ने 10 मिनट तक अपनी बात कही.

एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले और एसपी सांसद डिंपल यादव ने भी बिल में ओबीसी महिलाओं को आरक्षण देने की मांग की. सुप्रिया ने कहा कि सरकार बड़ा दिल करके बिल में एस, एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था करे.  डिंपल यादव ने कहा कि बिल में ओबीसी और अल्पसंख्यक महिलाओं को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए. कुल मिलाकर भले सदन के बाहर इस बिल को विपक्ष संसदीय मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाला और सरकार की चालाकी करार दे रहा हो, लेकिन संसद के भीतर  विपक्ष बिल का जरा भी विरोध नहीं कर रहा.