महिला आरक्षण का श्रेय किसे

Loading

मोदी सरकार के बहुमत को देखते हुए नई संसद के प्रथम सत्र में पेश किए गए महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पारित हो गया है. देश के 15 राज्यों की विधानसभाओं से भी इसे आसानी से स्वीकृति मिलने की आशा है. महिला आरक्षण विधेयक की यात्रा 27 वर्ष पुरानी है. सबसे पहले इसे एचडी देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार के समय लाने की कोशिश की गई थी. फिर मनमोहनसिंह सरकार के समय 2010 में इस बिल को राज्यसभा में पारित किया गया था. तब सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल कुछ पार्टियों के विरोध के कारण इसे लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका था. यद्यपि बीजेपी ने 2014 में चुनावी वादा किया था कि वह 33 प्रतिशत महिला आरक्षण सुनिश्चित करेगी लेकिन पूरे 9 वर्षों बाद चुनाव के मुहाने पर वह इसे निभाने जा रही है. महिलाओं को पंचायतों और शहरी निकायों में एक-तिहाई आरक्षण 90 के दशक में मिल गया था लेकिन संसद और विधानसभाओं में उनकी उपस्थिति आज भी बहुत कम बनी हुई है. 

2029 से पूर्व लागू हो पाना मुश्किल है क्योंकि 2024 में होनेवाले आम चुनाव से पहले जनगणना और सीटों का परिसीमन हो पाना असंभव है, इसलिए लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. परिसीमन की वजह से संसद में सीटों की तादाद भी बढ़ेगी. इस विधेयक के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में महिला आरक्षण 15 वर्ष के लिए रहेगा. बाद में इसे जारी रखने के लिए फिर बिल लाना पड़ेगा. इसके अलावा आरक्षण के भीतर आरक्षण की चुनौती भी होगी. बिल के अनुसार एक-तिहाई सीट अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगी. हर चुनाव में एक-तिहाई सीटों का रोटेशन होगा. यदि 2024 में केंद्र में सरकार नहीं बदली तो महिला आरक्षण विधेयक लागू करने में शीघ्रता आ सकती है.

नेताओं के परिवार की महिलाएं लाभ उठाएंगी

आम तौर पर महिला आरक्षण को लेकर यह भी माना जा रहा है कि सांसदों और विधायकों के परिवार की महिलाएं (पत्नी, बेटी या बहू) इसका लाभ उठाएंगी. प्रभावशाली नेता अपनी सीट महिला आरक्षित घोषित किए जाने पर का वास्तविक उद्देश्य साध्य होगा.

PM ने सही समय चुना

विगत वर्षों के दौरान राजनीति में महिलाओं की बुनियादी जरूरतों के बारे में सोचा जा रहा है. सभी पार्टियों को इसका भान हो चला है, बिहार में शराबबंदी लागू करने के नीतीश कुमार सरकार के फैसले का महिलाओं ने स्वागत किया था. केंद्र की मोदी सरकार ने उज्ज्वला योजना और टॉयलेट निर्माण से महिलाओं का समर्थन हासिल किया. कर्नाटक में महिलाओं के लिए मुफ्त बस प्रवास तथा मासिक आर्थिक मदद के वादे पर कांग्रेस जीती, 2024 के चुनाव में नल से जल योजना अपनी जगह परिवार की महिला सदस्य मोदी व बीजेपी के लिए सहायक हो सकती है. जहां बीजेपी को वहां से लड़ाएंगे. अभी भी कुछ ने नारी शक्ति वंदन विधेयक को ऐतिहासिक निरूपित किया।

राज्यों में महिला सरपंच होने के है, वहीं विपक्ष ने इसे प्रधानमंत्री मोदी का चुनावी जुमला बावजूद फैसला उसका पति ही लेता बताया और कहा कि इसमें महिलाओं के साथ धोखा हुआ है.. देखा गया है. ऐसी महिलाओं को आगे जनगणना व परिसीमन के बाद यह बिल 2029 से लागू होगा. लाना होगा जिनके परिवार से कोई कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने श्रेय लेते हुए कहा सांसद या विधायक नहीं है, तभी बिल कि यह आरक्षण हमारा है. जदयू ने कहा कि यदि कोटा के अंदर कोटा का आरक्षण होगा तो उसका विरोध नहीं करेंगे.