हमारे रवैये के साथ जीना होगा पश्चिमी देशों को भारत की चेतावनी

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    विदेश नीति का आधार स्वहित होता है. कोई भी सार्वभौम देश ऐसी विदेश नीति नहीं अपनाता जो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारनेवाली हो. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख की आलोचना करनेवालों को सख्ती से जवाब देते हुए कहा कि पश्चिमी देशों को भारत के इसी रवैये के साथ जीना होगा. उन्होंने कहा कि भारत भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से जुड़े मुद्दों पर मतभेद के बावजूद पश्चिमी देशों के साथ काम करता आया है. अब अगर भारत का रूस के प्रति रुख पश्चिमी देशों की उम्मीदों से मेल नहीं खा रहा है तो यह उनकी समस्या है. भारत की विदेश नीति दूसरे के अनुसार नहीं चलती.

    हम वही करते हैं जो भारत के लिए अच्छा और उपयुक्त है. अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देश चाहते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए भारत रूस की निंदा करे और उसका बहिष्कार करे. ये देश भूल जाते हैं कि भारत और रूस के दशकों पुराने निकट संबंध हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं. भारत की विदेश नीति हमेशा संतुलित रही है शीतयुद्ध के वर्षों या अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच एटमी शस्त्रों की होड़ के दौरान भी भारत साहसपूर्वक गुटनिरपेक्ष बना रहा और किसी भी सैनिक संधि में शामिल नहीं हुआ. पश्चिमी देश यह कदापि न सोचें कि भारत आंख मूंद कर उनके पीछे-पीछे चलेगा. भारत का नेतृत्व देशहित में अपने विवेक से निर्णय लेता आया है. वह किसी का पिछलग्गू नहीं रहा है.

    प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन को दृढ़ता के साथ नपे-तुले शब्दों में कहा था कि आज का समय युद्ध का नहीं है. इससे स्पष्ट है कि भारत युद्ध का या रूस के यूक्रेन पर हमले का समर्थन नहीं करता. रही बात पश्चिमी देशों के समान रूस पर प्रतिबंध लगाने की, तो भारत ऐसा क्यों करे? जब पश्चिमी देश भारत के प्रति बेरुखी दिखा रहे थे और अमेरिका पाकिस्तान को सिर से पैर तक घातक शस्त्रों से लाद रहा था, तब भारत को केवल रूस से ही शस्त्रास्त्रों, विमानों और टैंकों की मदद मिल रही थी. इंदिरा गांधी के शासन काल में औपचारिक रूप से भारत-रूस मैत्री संधि पर हस्ताक्षर हुए थे.

    रूस से भारत को कम कीमत पर कच्चा तेल (क्रूड आइल) मिल रहा है. ऐसे में भारत क्यों पश्चिमी देशों के समान रूस का बहिष्कार करे? विदेश मंत्री का स्पष्ट कथन है कि भारत ने पिछले 9 महीनों में अपने हितों का ध्यान रखा है. अपनी ‘विश्वसनीय’ स्थिति के साथ भारत संयम का पक्षधर है और चाहता है कि रूस-यूक्रेन यद्ध समाप्त हो. इस युद्ध से भारत के हित भी प्रभावित हुए हैं. हजारों भारतीय मेडिकल छात्रों को यूक्रेन से अपनी पढ़ाई छोड़कर भारत लौटना पड़ा.

    आतंक के खिलाफ भारत का साथ क्यों नहीं

    चीन की आक्रामक गतिविधियों के खिलाफ भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के मेलजोल से बने क्वाड संगठन के संदर्भ में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि ऐसा कभी भी तय नहीं हुआ था कि क्वाड देश कभी एक जैसी पोजिशन लेंगे. अगर क्वाड देशों को भारत से कोई उम्मीदें थीं तो भारत की भी उनसे उम्मीदें हैं. आतंकवाद पर सामूहिक एकता कहां है? पाकिस्तान दिन-रात आतंकवाद फैलाता है और चीन का उसकी पीठ पर हाथ है. भारत भी पाकिस्तान या अफगानिस्तान के संदर्भ में पश्चिमी देशों से पूछ सकता है कि वे भारत के साथ क्यों नहीं खड़े हैं? रूस का बहिष्कार करनेवाले यूरोप के देश सर्दियों में ऊर्जा संकट से जूझ रहे हैं. जर्मनी का बुरा हाल है. ब्रिटेन अपने बंद किए जा चुके कोयला आधारित उद्योगों को फिर शुरू कर रहा है. इसलिए स्वहित को देखते हुए भारत का रुख बिल्कुल सही है.