केंद्र की आर्थिक स्थिति पर केजरीवाल के ज्वलंत सवाल

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    दिल्ली के मुख्यमंत्री व आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने ऐसा सवाल उठाया जो राजनीति की बजाय केंद्र की आर्थिक स्थिति व नीतियों से जुड़ा हुआ है. उन्होंने सीधे प्रश्न किया कि जिस तरह केंद्र सरकार लोगों को मुफ्त सुविधाएं दिए जाने का कड़ा विरोध कर रही है, उससे लगता है कि उसकी वित्तीय स्थिति कुछ गड़बड़ है. बगैर प्रमोशन व स्थायित्व के 4 वर्षों की रक्षा भर्ती योजना अग्निपथ शुरू करना, केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत से घटाकर 29 प्रतिशत करना, खाद्य पदार्थों पर लगाए गए माल एवं सेवा कर (जीएसटी) व मनरेगा कोष में 25 फीसदी कटौती का उल्लेख करते हुए केजरीवाल ने पूछा कि सारा पैसा कहां जा रहा है?

    केजरीवाल ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि केंद्र सरकार प्रतिवर्ष पेट्रोल और डीजल पर 3.5 लाख करोड़ रुपए सहित भारी मात्रा में टैक्स एकत्रित करती है, फिर भी देश के लोगों को मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के खिलाफ है. केजरीवाल ने यह सवाल भी उठाया कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि केंद्र सरकार सैनिकों को पेंशन देने के लिए भी धन की कमी का हवाला दे रही है. ऐसा लगता है कि उसकी वित्तीय व्यवस्था कुछ गड़बड़ है.

    आर्थिक जानकार हैं अरविंद

    प्रश्न उठता है कि अरविंद केजरीवाल के सवाल कितने जायज हैं? माना कि राजनीति में आने के पूर्व केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा के बड़े अधिकारी थे और उन्हें सरकारी आय-व्यय की अच्छी-खासी समझ है. इसी प्रकार मुख्यमंत्री रहते हुए दिल्ली का बजट भी पूरी तरह उनकी निगाह में रहा है, इसलिए सरकार के आय-व्यय को समझने के मामले में उन्हें नौसिखिया नहीं कहा जा सकता. यह तर्क अवश्य दिया जा सकता है कि दिल्ली जैसे छोटे प्रदेश से केंद्र के बड़े बजट की कोई तुलना नहीं की जा सकती. दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है. इतने पर भी केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी कम करना एक गंभीर प्रश्न है. ऐसे में राज्यों के बजट पर विपरीत असर पड़ सकता है.

    केंद्र के सरोकार अलग हैं

    केंद्र सरकार की आय का अनुमान तो लगाया जा सकता है लेकिन व्यय का अनुमान लगाना टेढ़ी खीर है. अपनी अंतरराष्ट्रीय साख के अनुरूप केंद्र को पड़ोसी देशों की मदद भी करनी पड़ती है. कोरोना महामारी के समय विश्व के देशों को भारत ने मानवीयता के नाते मुफ्त वैक्सीन व दवाएं भेजीं. हाल ही में भीषण आर्थिक व राजनीतिक संकट में फंसे श्रीलंका को भारत सरकार ने खाद्यान्न व पेट्रोलियम उत्पादों की मदद दी. नेपाल, मालदीव व बांग्लादेश को भी ऐसी ही मदद दी जाती है ताकि वे चीन के चंगुल में न फंस जाएं. वैदेशिक संबंधों, दूतावासों तथा रॉ व एनआईए जैसी एजेंसियों पर भी व्यय होता है.

    केंद्रीय मंत्रिमंडल, राज्यपालों तथा केंद्रीय सेवा के अधिकारियों-कर्मचारियों का वेतन भी देना पड़ता है. राष्ट्रीय सुरक्षा का खर्च बढ़ता ही जा रहा है जो कि देश की हिफाजत और अमन-चैन के लिए जरूरी है. केंद्र सरकार ने हजारों करोड़ रुपए की लागत से सेंट्रल विस्टा निर्माण का कदम उठाया जिससे देश का गौरव बढ़ेगा. संसद का शीतकालीन सत्र सेंट्रल विस्टा के नए संसद भवन में कराए जाने की संभावना है. भविष्य में जब सांसदों की तादाद बढ़कर लगभग 1000 हो जाएगी, तब की आवश्यकताओं के हिसाब से नया संसद भवन बनाने की जरूरत थी. सेंट्रल विस्टा एक महत्वाकांक्षी योजना है. इसी तरह बड़े पैमाने पर हाईवे और फ्लाईओवर बनाए जा रहे हैं.

    वित्तमंत्री का जवाब

    वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने अरविंद केजरीवाल पर तथ्यों की तोड़मरोड़ करने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे गरीबों को डरा रहे हैं. कभी भी शिक्षा और स्वास्थ्य को रेवड़ी की श्रेणी में नहीं लाया गया. केंद्र की किसी भी सरकार ने इन्हें देने से इनकार नहीं किया. खाद्य पदार्थों पर जीएसटी पर भी केजरीवाल के दावे का जवाब देते हुए वित्तमंत्री ने कहा कि बहुत से राज्य इसके पहले से ही पैक्ड खाद्य पदार्थों पर टैक्स लगा रहे थे. जब विद्युत वितरण कंपनियों का करोड़ों रुपए बकाया है तो मुफ्त बिजली देने का वादा क्यों किया गया? दिल्ली मॉडेल पर मुफ्त बिजली देने का चुनावी वादा आम आदमी पार्टी अन्य राज्यों में भी करती है. रोजगार बढ़ाने तथा आय में वृद्धि करने के दूरगामी उपायों की बजाय विपक्ष मुफ्तखोरी को बढ़ावा देता है.