NSSO report

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व्यक्ति मेहनत करके जो कमाता है, वह महंगाई (Dearness) की भट्टी में स्वाहा हो जाता है।  जितनी आय (Income) नहीं, उससे डबल खर्च! कोई क्या धोए और क्या निचोड़े! मोदी सरकार अपने 2 टर्म के कार्यकाल में हर व्यक्ति की आमदनी दोगुनी हो जाने का दावा करते हुए अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन वास्तविकता यह है कि इन 10 वर्षों में लोगों का मासिक खर्च बढ़कर दोगुना हो गया है। 

इसकी वजह है बढ़ती महंगाई जिसे लेकर एक फिल्म में बुंदेलखंडी गीत था- सखी सैंया तो खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाय जात है।  नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO Report) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू खर्च 2011-12 की तुलना में दोगुना से अधिक हो गया है।  शहरी परिवारों में यह 2,630 रुपए से बढ़कर 6,459 और ग्रामीण कुटुंबों में 1,430 से बढ़कर 3,773 रुपए तक जा पहुंचा।  ऐसी हालत में लोगों को गुजर-बसर करना कठिन हो गया है। 

मध्यम वर्ग की हालत पतली

यह आम धारणा है कि वोटों की राजनीति के चलते सरकार गरीब वर्ग को केंद्र में रखकर योजनाएं बनाती है।  उद्योग जगत या संपन्न वर्ग भी सरकारी नीतियों से लाभान्वित होता है लेकिन मध्यम वर्ग अत्यंत उपेक्षित रह जाता है।  यह ऐसा वर्ग है जो सुशिक्षित और परिश्रमी होने के साथ संपन्न वर्ग के रहन-सहन की थोड़ी बहुत नकल करता है।  देश की कुल आय में मध्यम वर्ग का 29। 5 प्रतिशत हिस्सा है।  वह अपना जीवनस्तर बेहतर बनाने तथा अच्छा खाने-पहनने की चाह रखता है।

बच्चों को स्तरीय शिक्षा दिलाने अच्छे स्कूल में भेजता है।  वह अपनी लाइफस्टाइल में कंप्रोमाइज नहीं कर सकता।  इस मध्यम वर्ग की हालत आमदनी चवन्नी, खर्चा रुपैया वाली हो जाती है।  विगत वर्षों में बिजली, रसोई गैस, पेट्रोल सभी कुछ तो महंगा हो गया है।  उस अनुपात में कमाई नहीं बढ़ पाई।  छटनी या उद्योग बंद होने से मध्यम वर्ग के कितने ही सफेदपोश बेरोजगार हो गए।  11 वर्ष बाद आया एनएसएसओ का सर्वे कहता है कि अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद श्रमिकों के वेतन आवंटन में भारी गिरावट आई।  2019-20 (कोरोना काल) तक संगठित क्षेत्र का शुद्ध मूल्य 12। 1 लाख करोड़ रुपए हो गया जिसमें से सिर्फ 18। 9 फीसदी रकम श्रमिकों के वेतन-भत्ते पर खर्च की गई जबकि नियोक्ता का मुनाफा बढ़कर 38। 6 प्रतिशत हो गया।