
जम्मू-कश्मीर में शांति और सुव्यवस्था के लिए जब भी कोई सार्थक पहल की जाती है, पाकिस्तान तिलमिला उठता है और उसके पालित-पोषित आतंकी संगठन किसी न किसी वारदात को अंजाम देते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के राजनेताओं से बातचीत की और वहां विधानसभा चुनाव कराने व पूर्ण राज्य का दर्जा देने का ऑफर दिया. इस चर्चा में हुर्रियत कांफ्रेंस को अलग रखकर सभी पार्टियों के नेताओं व पूर्व मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया था.
पाकिस्तान व उसके पिट्ठू आतंकी संगठनों को यह बात अखर गई कि कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ अमन-चैन कायम होने जा रहा है. जम्मू एयरफोर्स स्टेशन के टेक्निकल एरिया के पास 5 मिनट के अंतराल से 2 ड्रोन के जरिए कम तीव्रता के ब्लास्ट किए गए जिसमें एयरफोर्स के 2 जवानों को हल्की चोट आई. पहला ब्लास्ट बिल्डिंग की छत पर और दूसरा नीचे हुआ. इस ब्लास्ट में M-17 हेलीकॉप्टरों को निशाना बनाने की साजिश थी जो कामयाब नहीं हो पाई. ड्रोन के टुकड़े नहीं मिले, इसलिए शक है कि इसमें इंपैक्ट आईईडी का इस्तेमाल किया गया होगा.
लश्कर पर शक
इन विस्फोटों के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ होने का संदेह व्यक्त किया जा रहा है. लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन पाकिस्तान के इशारे पर भारतीय जमीन से ऐसे हमले कर सकते हैं. ड्रोन के जरिए विस्फोट कराने से पहचान नहीं हो पाती कि किस आतंकी संगठन ने किसके इशारे पर यह काम किया है. यह छुपे तौर पर किया जाने वाला हमला है. इसमें लागत भी कम आती है और यदि विस्फोटक से लदा ड्रोन सटीक निशाने पर जा टकराया तो नुकसान भी काफी हो सकता है. आतंकी ऐसे पे लोड वाले ड्रोन में आईईडी का इस्तेमाल कर सकते हैं. आतंकियों के लिए सीधे सुरक्षा बल से मुकाबला करने या एयर स्ट्राइक की तुलना में ड्रोन का इस्तेमाल ज्यादा आसान है. इसमें हमलावर सुरक्षित रहता है. आतंकियों का यह पैंतरा काफी खतरनाक है.
सऊदी अरब में ऐसा ही हमला हुआ था
सितंबर 2019 में ईरान द्वारा समर्थित हाउथी विद्रोहियों ने सऊदी अरब की आर्मको तेल रिफायनरी व तेल कुओं पर विस्फोटक लदे ड्रोन से हमला किया था. इससे आइल फील्ड में आग लग गई थी और भारी नुकसान हुआ था. इसके बाद तमाम तेल उत्पादक अरब देश चिंतित हो उठे थे. उल्लेखनीय है कि पंजाब पुलिस ने भी अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट 2 क्षतिग्रस्त ड्रोन बरामद किए थे. इनका इस्तेमाल खालिस्तानी गुटों को हथियार और गोलाबारूद भेजने के लिए किया गया था.
उपाय योजना जरूरी
सुरक्षा बलों को अपनी सैनिक रडार प्रणाली को आधुनिक रूप देना होगा ताकि वह छोटे से ड्रोन को भी पहचान सके. आमतौर पर ऊंचाई पर उड़ रहे दुश्मन के विमान व हेलीकॉप्टर का रडार पता लगा लेता है लेकिन कम ऊंचाई पर उड़नेवाले छोटे ड्रोन का समय रहते पता लगाकर उसे नष्ट करना जरूरी है. किसी रक्षा संस्थान की ऊंची दीवारें, कांटेदार फेंसिंग भी ड्रोन को नहीं रोक सकती. रक्षा अनुसंधान व विकास संस्थान (डीआरडीओ) को ऐसा उपाय खोजना चाहिए कि दुश्मन का ड्रोन पहचान कर उसे नष्ट किया जा सके. यह कार्य प्राथमिकता के साथ होना चाहिए. जरूरी हो तो इसमें इजराइल जैसे मित्र देश की मदद लेनी चाहिए, जिसकी हवाई प्रतिरक्षा प्रणाली अत्यंत मजबूत है. भारत सरकार ने मार्च माह में बड़े और मध्यम आकार के कमर्शियल ड्रोन को अनुमति दी है जो सुरक्षा नियमों के दायरे में सामान यहां से वहां पहुंचा सकें. अब ऐसे व्यावसायिक ड्रोन पर भी नजर रखनी होगी क्योंकि आतंकवादी इसका बेजा इस्तेमाल कर सकते हैं.