Questions arising on the results of 10th-12th this year, far from reality, just a formality

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    इस वर्ष बहुत बड़ी तादाद में 10वीं व 12वीं के छात्र उत्तीर्ण हुए हैं. इतना अधिक प्रतिशत परीक्षाफल निकलना मात्र औपचारिकता दर्शाता है जो कि वास्तविकता से बहुत दूर है. क्या वास्तव में विद्यार्थी इतने होशियार हो गए हैं या पढ़ाई का स्तर बहुत सुधर गया है?

    यदि 2019 का अपवाद छोड़ दिए जाए तो 10वीं के 7 परीक्षाफल काफी आसान रहे. उत्तीर्ण विद्यार्थियों की संख्या में भारी वृद्धि से संदेह होना स्वाभाविक है कि शिक्षा का दर्जा घट गया है. 10वीं की परीक्षा में 96.94 विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए. गत वर्ष प्रत्यक्ष या ऑफलाइन परीक्षा नहीं हुई थी लेकिन 99.95 प्रतिशत छात्र पास हो गए थे. इस बार प्रत्यक्ष परीक्षा होने पर भी उत्तीर्ण विद्यार्थियों की तादाद कम नहीं हुई है. एसएससी में सिर्फ 3 प्रतिशत छात्र फेल हुए हैं. इस वर्ष 12वीं का रिजल्ट निकलने के बाद अनुमान था कि 10वीं का परीक्षाफल भी वैसा ही होगा. यह अंदाज सही निकला.

    राज्य में इस वर्ष 10वीं की परीक्षा देनेवाले 15,68,977 विद्यार्थियों ने गत वर्ष कोरोना के कारण नवीं की ऑनलाइन परीक्षा दी थी. इस वर्ष प्रत्यक्ष परीक्षा देनी पड़ी. इसकी तैयारी करने के लिए और पिछले वर्ष का पाठ्यक्रम पूरी तरह आत्मसात करने के लिए समय भी कम मिला. गत वर्ष 10वीं की परीक्षा आंतरिक मूल्यमापन के आधार पर ली गई थी. छात्रों के घर में बैठकर पढ़ाई पर नहीं बल्कि वर्ष भर स्कूलों द्वारा लिए गए इंटरनल एक्जाम के अंकों के आधार पर रिजल्ट लगाया गया था. स्वाभाविक रूप से उसमें 99.95 छात्र उत्तीर्ण हुए थे. इसके पूर्व 2020 में परीक्षाफल 95.30 प्रतिशत था जबकि 2019 में 77.10 प्रतिशत छात्र उत्तीर्ण हुए थे. इसकी वजह यह थी कि इंटरनल मार्क्स परीक्षाफल में शामिल नहीं किए गए थे. इसके पहले 2015 से 2018 के बीच 10वीं का परीक्षाफल 88 से 91 प्रतिशत के बीच रहा था.

    शिक्षा के दर्जे पर प्रश्नचिन्ह

    इतनी बड़ी तादाद में विद्यार्थियों का उत्तीर्ण होना शिक्षा के दर्जे पर प्रश्नचिन्ह लगाता है. क्या सरकार यह मानती है कि जितना ज्यादा रिजल्ट, उसके लिए उतना ही अच्छा! अभी 85 प्रतिशत नंबर लेने पर भी सभी छात्रों को इच्छित शाखा में प्रवेश नहीं मिल सकता. देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या पहले ही बढ़ रही है. व्यवसायिक पाठ्यक्रमों की ओर अधिकांश विद्यार्थियों का रुझान रहता है परंतु उसके लिए 10वीं-12वीं के अंकों पर विचार नहीं किया जाता बल्कि अलग से प्रवेश परीक्षा ली जाती है.

    अधिक कालेज बनाने पड़ेंगे

    जीवन में ज्ञान प्राप्ति का महत्व है जबकि हमारी शिक्षा प्रणाली परीक्षा केंद्रित है. जब इतने विद्यार्थी पास होंगे तो उनके लिए कालेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ानी होगी. शिक्षकों की तादाद तथा अन्य सुविधाएं भी बढ़ानी होंगी. इसके लिए धन लगता है जिसे देने के लिए सरकार तैयार नहीं है. इसके विपरीत सरकार शिक्षा पर खर्च कम कर रही है. इसलिए व्यवसायिक शिक्षा देनेवाली संस्थाओं का निजीकरण होता चला जा रहा हैं जहां प्रवेश में विद्यार्थी की गुणवत्ता की बजाय पैसा महत्व रखता है.

    देश में इस समय 18 से 24 वर्ष आयु समूह के 27 प्रतिशत छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं. 3 दशक पूर्व छात्रों को परीक्षा का डर लगता था लेकिन अब विद्यार्थी जानते है कि अधिक अंक कैसे हासिल किए जा सकते हैं. प्रश्नपत्र का स्वरूप तथा पाठ्यक्रम में किस भाग पर कितने अंक हैं, यह तय रहता है. इन बातों की जानकारी लेकर पढ़ाई करने से छात्र अधिक नंबर हासिल कर लेते हैं. अब इंटरनल एसेसमेंट, प्रमुख विषयों की लिखित परीक्षा के बीच 1 दिन की छुट्टी जैसी बातों से छात्रों को सुविधा हुई है.