सहज हास्य के चितेरे थे राजू

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    राजू श्रीवास्तव टेलीविजन पर पहली बार मौलिक कॉमेडी के साथ आए, जो आम आदमी की मुश्किलों और रोजमर्रा की घटनाओं पर आधारित थी. अद्भुत कल्पना शक्ति और निर्जीव चीजों तक को सजीव बनाकर कॉमेडी में पेश करने की क्षमता उन्हें अपने पूर्ववर्तियों व समकालीनों से अलग करती थी. करीब चार दशकों तक अपनी कॉमेडी से लोगों के दिल पर राज करने वाले राजू श्रीवास्तव की जिंदगी के आखिरी 42 दिन उतनी ही निर्मम त्रासदी के रूप में याद रहेंगे. उनके प्रशंसकों के लिए दुखद यह भी है कि मामूली ब्योरों को अपनी कॉमेडी का हिस्सा बनाने वाले राजू श्रीवास्तव अब यह कभी नहीं बता पाएंगे कि महामारी ने लोगों के दिल को इतना कमजोर कर दिया है कि जिम में वर्जिश करते हुए गिरना भी घातक साबित हो सकता है.

    राजू श्रीवास्तव की सफलता मुंबई की मायानगरी में एक आम आदमी की सफलता तो थी ही, वह हिंदी पट्टी के देसज और सहज हास्य की श्रेष्ठता की स्वीकृति भी थी. फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाओं और कॉमेडी के ऑडियो कैसेट से पहचान बनाने वाले राजू श्रीवास्तव ने द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में हिंदी पट्टी के गजोधर भैया के किरदार में ऐसी प्रसिद्धि बटोरी कि देखते ही देखते वह हिंदी कॉमेडी का प्रतिनिधि चेहरा हो गए.

    जब हिंदी फिल्मों में जॉनी लीवर की मैनरिज्म वाली कॉमेडी लोगों को गुदगुदाती थी, तब राजू श्रीवास्तव टेलीविजन पर अपनी मौलिक कॉमेडी के साथ आए, जो आम आदमी की मुश्किलों और रोजमर्रा की घटनाओं पर आधारित थी. शादी में नाराज फूफा हों या मुंबई की लोकल ट्रेन पर सफर करता आम आदमी या सिनेमा हॉल में फिल्म देखते गजोधर भैया, पुत्तन संकटा या मनोहर-ये सब हमारी वास्तविक जिंदगी का हिस्सा थे.

    उन्होंने हर घर की रिप्रेजेंट करने वाली कॉमेडी गढ़ी. मौलिक कल्पना शक्ति और मामूली व निर्जीव चीजों तक को सजीव बनाकर कॉमेडी में पेश करने की क्षमता राजू श्रीवास्तव को अपने पूर्ववर्तियों और समकालीनों से अलग करती थी. बेशक ‘यूपी-बिहार’ की हिंदी पट्टी ने उनकी लोकप्रियता में वृद्धि की, यह आकस्मिक नहीं है कि अमिताभ बच्चन और लालू प्रसाद की मिमिक्री ने ही उन्हें खास पहचान दी. बिग बॉस जैसे चरम पश्चिमी प्रभाव वाले टीवी कार्यक्रम में ‘जैक ऐंड जिल’ का देसी तर्जुमा ‘जैकवा ऐंड जिलवा’ पेश कर उन्होंने अपने दसज अंदाज का ठोस एहसास दिलाया था.

    उन्होंने हिंदी कॉमेडी को चालू चुटकुलों और द्विअर्थी संवादों से ही नहीं, उसके मैनरिज्म से भी बाहर निकाला और उन्हीं के कारण समकालीन हिंदी कॉमेडी का चेहरा भी बदला. हालांकि इस दौर में कॉमेडी अब टीवी से डिजिटल और छोटे शहरों से बड़े शहरों पर केंद्रित हो चुकी है, इसके बावजूद उसमें हिंदी पट्टी और उसका संघर्षशील जीवन दिखाई देता है, तो उसमें राजू श्रीवास्तव का बड़ा योगदान है.

    राजू ने राजनीति में भी जगह बनाई. सपा ने उन्हें 2014 में कानपुर से लोकसभा का टिकट दिया जहां के वे मूल निवासी थे. राजू ने चुनाव नहीं लड़ा बल्कि बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. 2019 में उन्हें यूपी फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष बनाया गया. राजू श्रीवास्तव ने मैंने प्यार किया सहित कई फिल्मों में काम किया. साथ ही टीवी सीरियल देख भाई देख, शक्तिमान और अदालत में अभिनय कर दमखम दिखाया. उनकी साफसुथरी कॉमेडी ने जनता के दिलो को छुआ. 3000 से ज्यादा स्टेज शो करनेवाले राजू गूगल पर टॉप सर्च में रहे और 20 लाख से अधिक लोगों ने उनके बारे में सर्च किया. वे अपने किरदार, चरित्र व संवाद से इतना कुछ दे गए हैं कि आनेवाली पीढ़ी भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी.