शिंदे-बीजेपी सरकार ने विश्वासमत भी जीता, अब मंत्रिमंडल गठन की जद्दोजहद

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    महाराष्ट्र की नवगठित बीजेपी-शिंदे सेना सरकार के सामने अब कोई चुनौती नहीं है. विधानसभा अध्यक्ष चुनाव के रूप में उसने सेमीफाइनल जीता तो विश्वासमत के रूप में फाइनल भी जीत लिया. भावुकता भरे बयानों का दौर भी बीत गया. जब सरकार के काम करने की घड़ी आती है तो वहां भावुकता का कोई स्थान नहीं रहता. जिस तरह के तालमेल से यह सरकार बनी, उसे बेहतर व प्रगाढ़ बनाते हुए आपसी समझ के साथ जमीनी स्तर पर काम करना होगा. राज्य के ज्वलंत प्रश्नों और चुनौतियों से निपटने के लिए शीघ्र ही मंत्रिमंडल का गठन आवश्यक है.

    सियासी कारणों से विलंब

    उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हमारी सरकार किसी भी स्थिति में गिरने वाली नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस की सुनवाई 11 जुलाई को है. इसका मंत्रिमंडल विस्तार पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन राजनीतिक कारणों से मंत्रिमंडल विस्तार में समय लग सकता है. फडणवीस ने कहा कि अभी तक मुख्यमंत्री शिंदे से मंत्रिमंडल को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है, इसलिए अभी से सत्ता साझेदारी के फार्मूले के बारे में नहीं बता सकते. विधानमंडल सत्र में सिर्फ हम 2 (मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री) रहे तो यह सही नहीं होगा, इसलिए उससे पहले मंत्रिमंडल का गठन कर लिया जाएगा.

    शिंदे गुट को झुकता माप

    जिस तरह बीजेपी हाईकमांड के निर्देश पर देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार किया, उससे स्पष्ट है कि बीजेपी के केंद्रीय नेता शिंदे गुट को झुकता माप दे रहे हैं. इसलिए मंत्रिमंडल गठन में एकनाथ शिंदे की बात को तरजीह दी जाएगी और दिखाने की कोशिश होगी कि उद्धव ठाकरे की तुलना में शिंदे अधिक कर्मठ और प्रभावशाली हैं. अब सवाल उठता है कि बीजेपी के 106 विधायक हैं, जबकि शिंदे गुट और निर्दलीय मिलाकर 50 होते हैं. इसलिए किस हथेली पर सत्ता का कितना प्रसाद रखा जाए, इसका भी विचार करना पड़ेगा. 

    बीजेपी के विधायक स्वाभाविक रूप से चाहेंगे कि उनके संख्याबल के अनुपात में मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया जाए. उनकी इस इच्छा को भी देवेंद्र को केंद्र तक पहुंचाना होगा. यह इसलिए जरूरी है ताकि बीजेपी नेताओं का भी उत्साह बना रहे. यदि बीजेपी ने सीएम पद नहीं लिया तो मंत्रिमंडल में उसे समुचित प्रतिनिधित्व तो मिलना ही चाहिए. हर कदम पर हक की कुरबानी नहीं दी जा सकती. जिस तरह उद्धव सरकार में एनसीपी के अधिक मंत्री थे और प्रमुख विभाग संभाल रहे थे, वैसे ही शिंदे सरकार में भी बीजेपी को शेयर मिलना चाहिए. इस तरह की भावना बीजेपी विधायकों में हो सकती है. दूसरी ओर शिंदे गुट के विधायक एकजुट बने रहें, इसलिए उन्हें भी मंत्रिमंडल में पर्याप्त स्थान देना होगा.

    निर्दलीयों को भी मौका

    शिंदे-बीजेपी सरकार में निर्दलीय भी अपनी सहभागिता चाहेंगे. वैसे भी निर्दलीयों का रुख ‘जिधर दम, उधर हम’ वाला रहता है. उनमें से भी कुछ को मंत्रिमंडल में जगह देनी होगी. ‘प्रहार’ नेता बच्चू कडू ने शिवसेना के बागी विधायकों का साथ दिया था. ऐसे ही कुछ अन्य निर्दलीय भी मंत्री बनने की आकांक्षा रखते होंगे. एक संतुलित मंत्रिमंडल बना पाना आसान नहीं है, इसके लिए योग्य, अनुभवी व कर्मठ चेहरे का चयन करने के अलावा नामों पर आपसी सहमति बनानी होगी. इस लिहाज से शिंदे और फडणवीस को जद्दोजहद के बीच आपस में मनोमंथन करते हुए जल्दी ही मंत्रिमंडल गठन की दिशा में कदम उठाना होगा. नई सरकार तुरंत काम पर लगे, इसके लिए यह जरूरी है.