कृषि उपज को उचित भाव नहीं, प्याज, टमाटर, कपास, सोयाबीन को दाम नहीं

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किसान (Farmer) खून-पसीना एक कर फसल उपजाता है लेकिन उसकी उपज का उचित दाम मिलना तो दूर, लागत भी नहीं निकल पाती। दूसरी ओर ग्राहकों को भी अधिक दाम चुकाने पड़ते हैं तो फिर मुनाफा कहां जाता है? सब बीच के लोग या बिचौलिए खा जाते हैं। यह ऐसा क्रूर सिस्टम है जिसमें किसान हमेशा नुकसान उठाते हैं। फसल ठीक से नहीं हुई तो घाटा होता है और यदि पैदावार अच्छी हुई तो उसके सही भाव नहीं मिलते। इस दुष्चक्र से किसानों को कभी छुटकारा नहीं मिलता। सरकार और नेता किसानों की इस दुर्दशा को दूर करने को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हैं। क्या कृषि का अर्थशास्त्र कभी भी दुरुस्त नहीं किया जा सकता? कभी आसमानी-सुलतानी संकट तो कभी प्रकृति का प्रकोप किसानों के धैर्य की परीक्षा लेता है। यह कैसी पत्थरदिल व्यवस्था है जो अन्नदाता किसानों को खून के आंसू रुलाती है?

किसानों को प्याज, टमाटर, कपास, सोयाबीन जैसी पैदावार में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। महंगा बीज, खाद, कीटनाशक डालकर, दिन रात मशक्कत कर किसान फसल उपजाता है तो इस उम्मीद से कि उसका परिश्रम सार्थक होगा और सही दाम मिल जाएंगे लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता। राजनेता अपनी नीतियां बनाते समय किसानों का हित जरा भी नहीं सोचते। केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके कुछ सप्ताह बाद महाराष्ट्र के थोक बाजारों में प्याज के दामों में तेजी से गिरावट आई है। किसानों को अपनी फसल पशुओं को खिलाने या रास्ते पर फेंकने की नौबत आ गई है।

बीड़ के किसान वैभव शिंदे को मंडी में प्याज का सिर्फ 1 रुपए किलो भाव मिला। ऐसे में उसे ट्रांसपोर्ट का किराया अपनी जेब से भरना पड़ा और आड़तिये को ही 558 रुपए देने पड़े। किसान के लिए फसल उपजाना गुनाह हो गया। एक्सपोर्ट पर मार्च 2024 तक प्रतिबंध लगाए जाने के कारण प्याज व्यवसाय को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। प्रत्येक 22 टन प्याजवाले 400 कंटेनर प्रतिबंध की वजह से रोक दिए गए। प्याज उत्पादकों की दुर्दशा देखते हुए सरकार को एक्सपोर्ट बैन के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

कैसे दी जा सकती है राहत

किसानों को घाटे से बचाने के लिए अधिक वेयर हाउस खोले जाएं जिनका संचालन किसानों की कोआपरेटिव सोसायटी करे। लागत और परिश्रम को ध्यान में रखते हुए फसलों की सपोर्ट प्राइस या समर्थन मूल्य तय किया जाए। उस दाम पर खरीदने के लिए सरकार तैयार रहे। फसल बीमा योजना के दोष दूर कर उसे सक्षम बनाया जाए। फसल को हजारों-लाखों का नुकसान होने पर मुआवजे के रूप में 50-60 रुपए के चेक देना किसान के जख्मों पर नमक छिड़कने के समान है।

इस चेक को बैंक में डालने के लिए वहां खाता खोलने के लिए अलग से पैसे लगते हैं। पिछले समय प्रचार हुआ था कि किसान देश में कहीं भी लाभप्रद मूल्य पर अपना माल बेच सकेगा। क्या सरकार इस दिशा में किसान की ठोस मदद कर सकती है? अमेरिका में किसानों को भारी सब्सिडी दी जाती है ताकि वे खेती किसानी करना छोड़ न दें। ऐसा यहां क्यों नहीं हो सकता? यहां के किसानों को आत्महत्या करने की नौबत क्यों आती है? किसानों को बुआई के समय कम कीमत में सुधरे हुए बीज, खाद, कृषि कार्य के लिए लगने वाली रकम उपलब्ध कराई जानी चाहिए। बाजार की ताकतों से किसानों को संरक्षण मिलना चाहिए। यह नहीं भूला जाना चाहिए कि हमारी अर्थव्यवस्था में आज भी कृषि का बड़ा योगदान है।