क्या बाइडन पर होगा मोदी मैजिक का असर

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    इस बार की अमेरिका यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी का रॉकस्टार जैसा स्वागत नहीं हुआ, जैसा कि बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान मैडिसन स्क्वेयर गार्डन में हुआ था या फिर हाउडी मोदी जैसा कार्निवाल, जब डोनॉल्ड ट्रंप ने 50,000 भारतीय अमेरिकियों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री मोदी की अगवानी की थी. भले ही उनके कट्टर विरोधी कुछ भी कहें, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी ऐसी विशिष्ट छवि विकसित की है, जो उन्हें अपने विदेशी समकक्षों में सकारात्मक भावना पैदा करने और व्यक्तिगत रिश्ते बनाने में मदद करती है. 

    वह दो अमेरिकी राष्ट्रपतियों- बराक ओबामा और डोनॉल्ड ट्रंप के साथ मजबूत रिश्ते बनाने में सक्षम रहे, जो कि व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे के विपरीत थे. ऐसे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी और बाइडन के बीच रिश्ते बेहद अच्छे रहेंगे. अपनी 4 दिवसीय अमेरिका यात्रा के दौरान मोदी क्वॉड सम्मेलन में शामिल होने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी संबोधित करेंगे. इससे पहले बाइडन और मोदी ने फोन पर बात की है और आभासी तौर पर 3 बार मुलाकात की है.  

    अनेक मुद्दों पर निकटता

    भारत और अमेरिका सैन्य रूप से पहले से कहीं ज्यादा करीब आ गए हैं. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, साइबर अपराध और मनी लॉन्ड्रिंग से लड़ने के लिए सूचना, उपग्रह छवियों और खुफिया सूचनाओं का व्यापक आदान-प्रदान किया गया है. कोविड-19 के व्यवधानों के बावजूद, 2019-20 में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 88.75 अरब डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था. 

    2020-21 में अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष 23 अरब डॉलर था. अमेरिका ने तेल के दूसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में सऊदी अरब की जगह ले ली है. भारत भी अपने ऑटोमोबाइल पार्ट्स, इंजीनियरिंग और कृषि उत्पाद के लिए अमेरिकी बाजार तक पहुंच पर पुनर्विचार की मांग कर रहा है. एच1बी वीजा मुद्दे और कुछ अन्य नियमों ने भारतीय टेक कंपनियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. 

    चीन के खिलाफ एकजुट

    वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पार चीनी आक्रमण के मुद्दे पर ट्रंप और बाइडन प्रशासन दोनों ही भारत का समर्थन करते रहे हैं. वास्तव में, बढ़ती चीनी मुखरता और आक्रामकता भारत-अमेरिका को करीब लाती है. काफी हद तक चीन की वजह से अमेरिका क्वाड और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के महत्व को स्वीकार करने के लिए प्रेरित हुआ है. 

    क्वाड के नेता अपने शिखर सम्मेलनों में इस बात पर जोर देते रहे हैं कि वे एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए खड़े हैं, जिसमें नौवहन और विमानों के आवागमन की स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार क्षेत्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान शामिल है. आगामी क्वाड शिखर सम्मेलन में भी इसे दोहराया जाएगा. मोदी क्षेत्र में सबकी सुरक्षा और विकास (सागर) की अपनी अवधारणा पर जोर दे सकते हैं.  

    प्रधानमंत्री मोदी ने बराक ओबामा और ट्रंप, दोनों को सलाह दी थी कि अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को बुलाने में जल्दबाजी न करें. भारत ने बार-बार दोहराया कि अच्छा या बुरा तालिबान नाम की कोई चीज नहीं है, वे एक ही हैं और अनिवार्य रूप से बुरे हैं. लेकिन युद्ध से थका हुआ अमेरिका अफगानिस्तान से बाहर निकलने के लिए इतना बेताब था कि उसने पाकिस्तान और कतर की मदद से विगत 21 मार्च को दोहा समझौता किया, जो तालिबान के सामने उसका आत्मसमर्पण था.