bombay high court
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    बाम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने यह कहते हुए कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की पहचान है, राज्य सरकार के जुलाई 2020 के उस निर्णय को रद्द कर दिया जिसमें स्वायत्त निकायों के चुनाव के पूर्व ग्राम पंचायतों में प्रशासन की नियुक्ति के लिए पालक मंत्री की राय लेने को कहा गया था. हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता के लिहाज से स्वतंत्र प्रशासक नियुक्त किया जाना चाहिए. ऐसा कोई प्रशासक न हो जो राजनीतिक एजेंडा के तहत काम करे और सत्ता पक्ष को अवांछित मदद पहुंचाए.

    सीईओ को ऐसे प्रशासक की नियुक्ति की खुली छूट देनी चाहिए जिस पर कोई राजनीतिक प्रभाव न हो. न्यायमूर्ति एस शिंदे व (Justices S S Shinde) न्या. एमएस कर्णिक (M S Karnik) की पीठ ने कहा कि संविधान में पंचायतराज के अंतर्गत ग्राम पंचायत को उच्चकोटि की स्वायत्तता दी गई है. बड़ी संख्या में ग्राम पंचायतें (Gram Panchayats) रहने से राजनेता उन पर अपना नियंत्रण हासिल करना चाहते हैं. महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम को चुनौती देते हए अनेक याचिकाएं दाखिल की गई थीं. हाईकोर्ट ने उस जीआर को रद्द कर दिया जिसमें जिला परिषद के सीईओ को प्रशासक की नियुक्ति के लिए पालक मंत्री की राय लेने का प्रावधान था. राज्य में लगभग 14,000 ग्राम पंचायतें हैं जिनका कार्यकाल या तो समाप्त हो चुका है या होने जा रहा है.