नोटबंदी एक भयावह त्रासदी

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इसमें कोई शक नहीं कि 8 नवंबर 2016 को लिया गया नोटबंदी (Demonetization)का फैसला पूरी तरह मनमाना और अदूरदर्शितापूर्ण था. इस तुगलकी कदम का दूर-दूर तक कोई औचित्य नहीं था तथा इस भयावह त्रासदी को सभी ने झेला. इसके अर्थव्यवस्था (Economy) पर दुष्परिणाम होते देखे गए. लोकतंत्र में कोई भी निर्णय जन आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए लेकिन प्रधानमंत्री मोदी(Narendra modi) ने सभी को अवाक करते हुए अचानक नोटबंदी की घोषणा कर दी थी. 4 वर्ष पहले की गई नोटबंदी से क्या लाभ हुआ, इसे बताने में सरकार पूरी तरह विफल रही.

सरकार ने दावा किया था कि भ्रष्टाचार को रोकने, कालेधन पर अंकुश लगाने और जाली नोटों का चलन रोकने के लिए उसने नोटबंदी लागू की. यदि ऐसा था तो सवाल किया जा सकता है कि क्या देश में सचमुच भ्रष्टाचार खत्म हो गया और कालेधन का अस्तित्व मिट गया? जितने पुराने नोटों को अवैध घोषित किया गया था, उतनी रकम फिर सरकारी खजाने में लौट आई. मतलब समस्या वैसी की वैसी ही बनी रही. यदि सरकार जमाखोरी रोकने के उद्देश्य से बड़े मूल्यवर्ग के नोटों को चलन से बाहर करना चाहती थी तो उसने 500 और 1000 रुपए के नोट रद्द करने के बाद फिर 2000 रुपए का नया गुलाबी नोट क्यों जारी किया? सरकार डिजिटाइजेशन को बढ़ावा देना चाहती थी लेकिन क्या ऐसा हो पाया? कांग्रेस महासचिव और पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने सवाल किया कि जब अमेरिका, कनाडा, जर्मनी सहित पश्चिमी देशों में 50 से लेकर 80 प्रतिशत तक कैश में लेनदेन होता है तो सरकार कैशलेस इकोनॉमी को क्यों बढ़ावा देना चाहती थी? भारत में प्रतिदिन 1 लाख करोड़ रुपए का कैशलेस ट्रांजैक्शन हो रहा है. इसके एवज में जनता को अकारण 2 प्रतिशत राशि कमीशन के तौर पर देनी पड़ रही है. यदि इस समस्त राशि का वार्षिक जोड़ निकाला जाए तो यह रकम 7 लाख करोड़ रुपए से अधिक होती है.

राहुल का सनसनीखेज आरोप

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि नोटबंदी प्रधानमंत्री मोदी की सोची-समझी चाल थी ताकि आम जनता के पैसे से ‘मोदी-मित्र’ पूंजीपतियों का लाखों करोड़ रुपयों का कर्ज माफ किया जा सके. राहुल पहले भी पीएम पर क्रॉनी कैपिटलिज्म (उद्योग घरानों के साथ मिलकर चलाया जाने वाला पूंजीवाद) का आरोप लगा चुके हैं. उन्होंने समय-समय पर यह भी कहा कि मोदी की आर्थिक नीतियां अंबानी और अदानी को लाभ पहुंचाने वाली रही हैं. राहुल गांधी ने यह भी प्रश्न किया कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भारत की इकोनॉमी से आगे कैसे निकल गई? अर्थव्यवस्था में गिरावट के लिए सरकार कोरोना वायरस को जिम्मेदार बताती है. अगर यही कारण है तो कोरोना का प्रकोप सारी दुनिया में है. फिर भी भारत कैसे पीछे रह गया? राहुल ने कहा कि भारत की गिरती अर्थव्यवस्था का कारण कोविड-19 नहीं, बल्कि नोटबंदी और जीएसटी है.

उद्योगों पर जबरदस्त मार

यह हकीकत किसी से छुपी नहीं है कि नोटबंदी लागू होने के बाद लघु और मध्यम उद्योग बंद हो गए. श्रमिकों को वेतन देने के लिए मालिकों के पास नकद रकम नहीं थी. बिल्डर का धंधा चौपट हो गया. छोटे दूकानदारों, फेरीवालों, कारीगरों, मजदूरों, किसानों की जिंदगी आफत में पड़ गई. पुराने नोट रद्द हो गए और नए प्रचलन में आए नहीं थे. लोगों की बचत भी पानी में चली गई. उद्योग बंद होने से भारी बेरोजगारी फैली. कोई भी सब्जीवाला, फलवाला या दूध वाला डिजिटल पेमेंट नहीं लेता. कैश का काम कैश से ही होता है. जिन बड़े नौकरशाहों और मंत्रियों के पास अपार धन है, उन्हें नोटबंदी की वजह से आम जनता को होने वाली दिक्कतें दिखाई नहीं दीं. ऐसा भी माना जाता है कि प्रधानमंत्री ने विपक्षी पार्टियों के पास मौजूद फंड को बरबाद करने के उद्देश्य से नोटबंदी लागू की. किसी भी पार्टी के पास पूरी रकम का सही-सही हिसाब नहीं होता. चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्षी पार्टियां, उनके पास बेहिसाबी धन भी होता है. विपक्ष को आर्थिक दृष्टि से खोखला करने की चाल भी इस कदम के पीछे रही होगी. लोगों को अपने पुराने नोट बदलवाने के लिए सारा काम-धाम छोड़कर बैंकों के सामने घंटों कतारों में खड़े रहने के लिए विवश होना पड़ा. 

आतंकवाद फिर भी जारी है

सरकार ने एक कारण यह भी बताया कि नोटबंदी से आतंकवाद पर लगाम लगेगी तथा आतंकी संगठनों व अलगाववादियों को हवाला से मिलने वाला धन रुक जाएगा. यदि सरकार का यह तर्क सही था तो आतंकवाद अब भी क्यों जारी है? कालेधन पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पाया.

कोरोना ने भी इकोनॉमी को झकझोरा

नोटबंदी और फिर जीएसटी ने उद्योग-व्यापार को संकट में डाला. कितनी ही औद्योगिक इकाइयां धड़ाधड़ बंद होती चली गईं. रही-सही कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी. लॉकडाउन लागू होने के बाद लाखों मजदूर बेरोगार हो गए और बड़े शहरों से सैकड़ों मील दूर स्थित अपने गांवों में लौटने को विवश हुए. कितने ही लोगों की भूख, डिहाइड्रेशन, गर्म मौसम, थकावट और दुर्घटना से रास्ते में मौत हो गई. जब हालात में कुछ सुधार हुआ तो फिर शहरों की ओर लौटने का सिलसिला शुरू हुआ किंतु उजड़ा हुआ घरौंदा फिर बसा पाना कितना कठिन होता है, यह भुक्तभोगी ही जानते हैं.