मराठी में बोले CJI सुको, हाईकोर्ट के अन्य जजों को राह दिखाई

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    भारत से अंग्रेज 75 वर्ष पूर्व चले गए लेकिन अंग्रेजी भाषा यहीं छोड़ गए. नतीजा यह है कि देश के तमाम हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की भाषा अंग्रेजी है. एकाध राज्य में अपवाद हो सकता है अन्यथा हाईकोर्ट व सुको में वकील और जज सिर्फ इंग्लिश ही बोलते हैं वकीलों की जिरह सिर्फ अंग्रेजी में होती है. जिला अदालतों या मजिस्ट्रेट की ट्रायल कोर्ट में अंग्रेजी की बाध्यता नहीं है. 

    वहां स्थानीय भाषा या हिंदी चलती है. जो वकील इत्मिनान और पूर्ण आत्मविश्वास से धाराप्रवाह अंग्रेजी नहीं बोल पाता उसकी प्रैक्टिस प्राय: लोअर कोर्ट तक सीमित रहती है. जब वकील अंग्रेजी में बहस करते है तो मुवक्किल समझ नहीं पाता कि क्या बोला जा रहा है. मुकदमा हारने पर भी वह कहता है कि वकील अंग्रेजी में खूब बोला, अच्छा बोला लेकिन मेरी किस्मत ही खोटी थी जो केस हार गया. 

    उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट में हिंदी को स्वीकृति मिली है, वहां हिंदी में उपलब्ध तकनीकी शब्दावली का इस्तेमाल बहस में किया जाने लगा है. भारतीय भाषाएं समृद्ध हैं. यह न भूला जाए कि अंग्रेजी के आने के पहले भी देश में न्यायदान स्थानीय भाषाओं में बखूबी हुआ करता था. यह स्वागत योग्य है कि परंपरा से हटकर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान मराठी में बातचीत की. 

    याचिकाकर्ताओं के वकील पुणे के थे. सुनवाई के दौरान वे अपनी दलील अंग्रेजी में रखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हें अंग्रेजी में लड़खड़ाता देखकर चीफ जस्टिस ने मराठी में संवाद करना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि क्या आप मराठी जानते हैं? आज आपका आवेदन सूचीबद्ध है लेकिन मैं रजिस्ट्री से पूछता हूं कि आपके मामले में क्या हुआ है. 

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की इस उदारता को अदालत में उपस्थित लोगों ने महसूस किया. वकील कुछ महत्वपूर्ण बिंदु अंग्रेजी में भी प्रस्तुत करना चाहते थे लेकिन उन मुद्दों को पेश करते समय उन्हें अटकता देखकर चंद्रचूड़ ने मराठी में संवाद जारी रखते हुए वकील का आत्मविश्वास बढ़ाया और उनकी सुविधा का ध्यान रखा. ऐसा ही उदारतापूर्ण रवैया अन्य न्यायाधीश भी अपनाएं तो न्यायदान में सुलभता होगी. 

    जब अदालत में वादी-प्रतिवादी से उसे आनेवाली भाषा में सवाल पूछे जा सकते हैं तो वकील और जज भी तो हिंदी या अन्य भारतीय भाषा में बहस को स्वीकृति दे सकते हैं. न्या. चंद्रचूड़ ने एक रास्ता दिखाया है जिसका अन्य जज भी अनुकरण कर सकते हैं.