Corruption in women's police stations, Madras High Court strongly criticized

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महिला थानों से सक्रियता की जो उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हो पा रही है. 1992 में घरेलू हिंसा व क्रूरता से पीड़ित महिलाओं की रक्षा करने तथा दोषियों को पकड़ने के उद्देश्य से महिला थानों का गठन किया गया था. मद्रास हाईकोर्ट ने महिला पुलिस स्टेशनों के ढीलेपन पर सख्त रुख अपनाया है. न्यायमूर्ति आर सुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी की खंडपीठ ने तमिलनाडु के सभी 222 महिला पुलिस स्टेशनों के संबंध में पुलिस महासंचालक को कई निर्देश दिए. हाईकोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि महिला थाने बेशर्म कंगारू कोर्ट और भ्रष्टाचार के अड्डे बन चुके हैं. महिलाओं के साथ छेड़छाड़, दुष्कर्म, दहेज के लिए सताया जाना, ससुरालवालों का क्रूर व्यवहार ऐसे मसले हैं जिन्हें महिला पुलिस अधिकारी बेहतर समझ सकती हैं और उचित कार्रवाई कर सकती हैं. पीड़ित महिला वहां अपनी व्यथा खुलकर बता सकती हैं, यही सोचकर महिला थानों की स्थापना की गई लेकिन वहां भी धांधली और भ्रष्टाचार होने लग जाए तो पीड़ित महिलाएं जाएगी कहां? जाहिर है कि महिला को न्याय देने की बजाय उसे सतानेवालों से रिश्वत लेकर मामले रफा-दफा किए जाते होंगे या कम्प्रोमाइज करने के लिए अनुचित दबाव डाला जाता रहा होगा. मद्रास हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बाद तमिलनाडु सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह शिकायतों व आरोपों पर गंभीरता से गौर करे तथा महिला थानों की व्यवस्था सुधारे. जो महिला पुलिस अधिकारी या कर्मी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उन पर अविलंब कार्रवाई की जाए. महिलाओं के खिलाफ देश में हर कहीं अपराध हो रहे हैं. घरेलू हिंसा एक बड़ी समस्या है. कुछ निकम्मे पति जबरन अपनी पत्नी की कमाई छीन लेते हैं और जुए व शराब में रकम लुटा लेते हैं. कुछ पति शक्की स्वभाव के भी होते हैं और अकारण हिंसक हो जाते हैं. गुरुग्राम में पुलिस कमिश्नर कला रामचंद्रन ने महिला पीड़ितों की सुविधा तथा उन्हें शीघ्र मदद पहुंचाने के लिहाज से नए निर्देश जारी किए हैं. इसके अनुसार महिला अपने खिलाफ हुए अपराध की शिकायत किसी भी थाने में कर सकती है. साथ ही बाद में वह चाहे तो अपने केस को महिला थाना में भी ट्रांसफर करा सकती है. थाना इंचार्ज को यह केस महिला थाने को ट्रांसफर करना होगा तथा जांच के दौरान पुलिस प्रक्रिया के तहत दस्तावेजों में जिक्र करना होगा कि केस ट्रांसफर हो गया. निर्देश में कहा गया कि पीड़ित महिला एफआईआर रजिस्ट्रेशन के समय या बाद में अपने केस को महिला थाने में स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र है. व्यवस्था ऐसी बनानी चाहिए कि महिलाएं स्वयं को निर्भय व सुरक्षित महसूस करें और उन्हें लगे कि किसी भी मुसीबत में पुलिस उनके साथ है. इसे देखते हुए महिला थाने को और अधिक सक्रिय व उद्देश्यपूर्ण तरीके से काम करना होगा.