यह कैसी कुव्यवस्था है जिसमें ढंग से एक्सप्रेस-वे बन ही नहीं पाते लेकिन उतावली और आपाधापी में उनका उद्घाटन कर श्रेय लूटा जाता है. पूरी तरह मजबूत और सुरक्षित सड़क बनने से पहले ही उसे लोकार्पण कर खोल दिया जाता है. यह वाहन चालकों व यात्रियों की जान के साथ खिलवाड़ है. जब इंजीनियर और ठेकेदार सड़क के सुरक्षा मानकों के प्रति पूरी तरह आश्वस्त नहीं होते तो जल्दबाजी में उद्घाटन क्यों किया जाता है? इस तरह की धांधली लगातार देखी जा रही है.
दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे के पहले चरण के दौसा से दिल्ली के बीच का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 12 फरवरी को राजस्थान के दौसा में किया था इस एक्सप्रेस वे को बनाने में लगभग 12,000 करोड़ रुपए लागत आने के अलावा इस पर 120 किलोमीटर की स्पीड से वाहन दौड़ सकने का दावा किया गया. यह दावा खतरनाक साबित हुआ कई जगहों पर ऐसी असंतुलित व बेढ़ब सड़क बना दी गई जहां गाड़ी की रफ्तार 100 किमी प्रतिघंटा होते ही अनियंत्रित होने की शिकायतें मिली हैं और वाहन पलटने का खतरा बना हुआ है.
यह बात ध्यान में आने पर दिल्ली रिंग रोड से 10 किलोमीटर आगे गुरूग्राम के धापडोज टोल प्लाजा के बाद इस एक्सप्रेस वे को खोदकर सड़क फिर से बनाई जा रही है. दिल्ली से मुंबई को जोड़नेवाले देश के सबसे बड़े एक्सप्रेस-वे की ऐसी हालत होना चिंता का विषय है. यही हाल अन्यत्र भी है. नागपुर से मुंबई के लिए बनाए जा रहे समृद्धि महामार्ग में भी आवश्यक सुविधाएं नहीं हैं. कोई जानवर अचानक सामने आ जाने से दुर्घटना का खतरा बना रहता है. जंगली जानवरों के दूसरी ओर निकल जाने के लिए ओवरपास बनाए गए लेकिन फिर भी कभी बंदर, सुअर या हिरन वाहनों की चपेट में आ गए. कुछ हादसे भी हुए.
तेज गति से वाहन चलाने के प्रति लोग पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पाए हैं. उत्तरप्रदेश में गत वर्ष जुलाई माह में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन के पांचवे दिन ही छिरिया-सलेमपुर के पास चित्रकूट की ओर जानेवाली सड़क धंस गई और वहां 2 फीट चौड़ा व 6 फीट लंबा गुड्ढा पड़ गया. इसके अलावा पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे भी बारिश नहीं झेल पाया था और उनमें सुलतानपुर के पास 15 फीट का गड्ढा हो गया था जिसमें कार गिर गई थी. इसलिए उद्घाटन तभी हो जब सड़क पूरी तरह मजबूत और निरापद बन जाए.