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    केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से संघ परिवार खासतौर पर विहिप और बजरंग दल के कार्यकर्ता गोरक्षा को लेकर अत्यंत सक्रिय हो गए थे. अब भी गोरक्षक ऐसे वाहनों को पकड़ते हैं जिनमें गोतस्कर गोवंश को कत्ल के लिए ले जाते पाए जाते हैं. गोवंश हत्या से जुड़े लोगों की पिटाई व हत्या भी हुई है. धार्मिक सहारोहों में कितने ही दशकों से नारा लगाया जाता रहा है- देश-धर्म का नाता है, गाय हमारी माता है. कानून भी गोवंश की हत्या के लिए मना करता है फिर भी कत्लखाने में यह कारगुजारी होती ही रहती है. हिंदुत्व के मुद्दे पर राजनीति करनेवाली बीजेपी के बारे में माना जाता है कि वह गोहत्या की कट्टर विरोधी है. ऐसे में बीजेपी के मेघालय प्रदेश अध्यक्ष अर्नेस्ट मावरी ने खुद होकर कहा कि वे गोमांस खाते हैं और उनके बीफ खाने से पार्टी को कोई दिक्कत नहीं है.

    मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को विधानसभा चुनाव की वोटिंग होनी है. ऐसे में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के ऐसे बयान से राजनीतिक हंगामे के आसार नजर आ रहे हैं. पूर्वोत्तर राज्यों में पिछली सदी से मिशनरियों की सक्रियता रहने से वहां बड़ी तादाद में ईसाई हैं. जब यह पूछा गया कि क्या मेघालय के 90 प्रतिशत ईसाई बीजेपी के कट्टर रूख को अपना लेंगे तो मावरी ने कहा कि यहां बीजेपी की सरकार को 9 वर्ष हो चुके हैं. यहां किसी चर्च पर हमला नहीं हुआ. राज्य में बीफ खाने पर कोई रोक नहीं है. वह खुद भी बीफ खाते हैं और बीजेपी में हैं. अब मुद्दा यह है कि मेगालय बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के इस बयान को उत्तरप्रदेश, राजस्थान आदि के बीजेपी कार्यकर्ता किस रूप में लेंगे?

    विहिप, बजरंग दल व साधु-संतों की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी? यहां उल्लेखनीय है कि जनसंघ के जमाने में कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर के सामने भी यह मुद्दा उठाया था कि नगालैंड जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में लोग बीफ खाते हैं तो क्या उन्हें हिंदू माना जाए? इस पर गोलवलकर ने कहा था कि व्यक्ति विचारों से हिंदू होता है, खान पान को इसमें न लाया जाए. वह व्यक्तिगत विषय है.

    पूर्वोत्तर के राज्यों का अपना परंपरागत खानपान है. यदि उनका आरएसएस और तत्कालीन जनसंघ से प्रेम है तो इसे स्वीकार करना होगा. अब बीजेपी के जमाने की यही स्थिति है. पार्टी को समूचे देश में अपना प्रचार-प्रसार करना है तथा हिंदुओं के अलावा मुस्लिमों व ईसाइयों को भी अपने साथ लाना है तो खान पान के मुद्दे पर लचीलापन अपनाना होगा. गोवंश रक्षा का मुद्दा जितना हिंदी भाषी प्रदेशों में महत्वपूर्ण व संवेदनशील है वैसा पूर्वोत्तर के राज्यों व दक्षिण के केरल में नहीं है.