हत्याओं से बेबस, कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने की सलाह

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    जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35ए हटाए जाने के बाद से केंद्र सरकार का प्रयास यही रहा है कि कश्मीर से खदेड़े गए हिंदू वापस घाटी में लौटें. कहने को यह बात अच्छी लगती है लेकिन इन पंडितों व उनके परिवारों के सुरक्षा की कौन सी गारंटी है? आतंकवादी टारगेट किलिंग करते ही जा रहे हैं. शोपियां जिले में आतंकियों ने 2 कश्मीरी पंडित भाइयों पर हमला किया. इसमें से एक सुनील कुमार की मौत हो गई और दूसरा पिंटू कुमार घायल है. 

    इन्हें पहले भी हत्या की धमकियां मिली थीं लेकिन शिकायत के बाद भी उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई थी. इस वर्ष कितने ही कश्मीरी हिंदुओं की आतंकियों ने हत्या की. एक सिख महिला टीचर को स्कूल में घुसकर गोली मारी गई. कश्मीरी पंडित, कर्मचारी व दूसरे प्रदेशों से गए लोग जम्मू में आकर प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन सरकार उन्हें सुरक्षा नहीं दे पा रही है. गेट वाली कालोनी में रखे गए कश्मीरी पंडित परिवारों को वहां तो सुरक्षा है लेकिन जब वे लोग काम पर या बाजार जाते हैं तो रास्ते में या कार्यस्थल पर कोई सुरक्षा नहीं है. 

    उन्हें जान हथेली पर लेकर जाना पड़ता है. जब तक ये कर्मचारी अपने ऑफिस से या उनके बच्चे स्कूल से घर नहीं लौटते, परिवार को चिंता लगी रहती है. आतंकियों के मुखबिर पंडितों के आने-जाने के रास्ते की टोह लेते हैं और मौका पाते ही आतंकी उनकी टारगेट किलिंग कर डालते हैं. ऐसी अत्यंत असुरक्षित स्थिति में कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) ने समुदाय के लोगों से घाटी छोड़ने की अपील की है. 

    केपीएसएस के प्रमुख संजय टिक्कू ने कहा कि एक और हमले के जरिए आतंकवादियों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे कश्मीर घाटी के सभी पंडितों की हत्या कर देंगे. कश्मीरी पंडितों के लिए एक ही विकल्प बचा है कि कश्मीर छोड़ दें या धार्मिक कट्टरपंथियों के हाथों मार डाले जाएं. वे जम्मू या दिल्ली जैसे सुरक्षित स्थान पर चले जाएं. सरकार अल्पसंख्यकों खास तौर पर कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा प्रदान करने में नाकामयाब रही है. प्रशासन से सुरक्षित स्थान पर भेजने का अनुरोध करने पर कहा गया कि उन्हें उनके गांवों में ही रहना है. हमले की आशंका जताए जाने पर भी कोई सुरक्षा नहीं दी जाती.