आटोमेशन का असर, बैंकों में आधी हो गई क्लर्कों की तादाद

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    पहले बैंकों में सारा काम मैनुअल तरीके से किया जाता था. पासबुक एंट्री से लेकर सारे काम लिखकर किए जाते थे. बैंक के खाते व रजिस्टर लिखित रूप में रहा करते थे. इन सारी बातों की वजह से बैंक में अधिक साफ रखना जरूरी था लेकिन जब से तकनीकी आई, कामकाज आसानी के साथ ही तेजी से होने लगा. साथ ही ऑटोमेशन आने से बैंक में क्लर्कों की भूमिका भी कम हो गई. तकनीक ने बैंक के बाबुओं को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाई है. 

    आज किसी को बहुत अधिक फाइलों को स्थानांतरित करने या बहुत ज्यादा कागजी कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं रह गई. कितने ही बैंकों में पासबुक अपडेट करने की स्वचालित मशीन है. नोट डालकर सिक्के हासिल करने की भी मशीन है. चेक क्लीयरेन्स के लिए हस्ताक्षर की पहचान भी मशीन से होने लगी है. इलेक्ट्रानिक क्लीयरिंग से काम आसान हुआ है. रकम को एक से दूसरे बैंक या खाते में ट्रांसफर करना भी तकनीक की वजह से आसान हुआ है. 

    अब पेंशन या अन्य मद में आनेवाली रकम भी चेक से न आकर सीधे अकाउंट में ट्रांसफर होने लगी है. म्यूचुअल फंड या एसआईपी की रकम अथवा ईएमआई का भुगतान भी एक बार बैंक को निर्देश देने के बाद आटोमेशन में आ जाता है. दी हुई तारीख को उतनी रकम बराबर कटती या जमा हो जाती है. फाइलों को डिजिटल माध्यम से भेजने तथा ग्राहकों के बैंक की शाखा में जाने की बजाय ऑनलाइन लेन-देन को प्राथमिकता दी जाने लगी है. 

    लोग पेटीएम, रुपे कार्ड या गूगल पे से भुगतान करते हैं जिसमें नकद व्यवहार जरूरी नहीं रह गया. एटीएम खुल जाने तथा डिपाजिट स्वीकार करनेवाली मशीनों की वजह से लोगों की पेमेंट काउंटर के सामने भीड़ नहीं लगती. बैंक क्लर्क का काम मुख्य रूप से दस्तावेज तैयार करना, टेलर, कैशियर तथा अधिकारी के सहायक का रहता है. टेक्नोलॉजी के तेजी से बढ़ने के कारण बैंकों में क्लर्कों पर निर्भरता कम हुई है. स्मार्ट फोन आने और सस्ते डेटा प्लान के कारण शहरी क्षेत्रों में बैंकों की शाखाओं में कतारें कम हो गई हैं.