तिरुपति मंदिर के ढाई लाख करोड़ से समाज की भलाई के लिए क्या कार्य किए गए?

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    धर्म की मूल भावना में परोपकार का विशिष्ट स्थान है. इसीलिए कहा गया है- परहित सरिस धरम नहीं भाई! पूजा, आराधना, अनुष्ठान व कर्मकांड तब तक अधूरे हैं जब तक खुले दिल से दान न दिया जाए. प्राचीन सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था में मंदिरों में जो धन जमा होता था, वह एक प्रकार का आपातकालीन कोष हुआ करता था. यदि अकाल या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा आ जाए, कोई आक्रमण हो जाए तो ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए इस कोष का इस्तेमाल किया जाता था. मंदिरों या धर्मस्थलों में यह संपत्ति जनता के चढ़ावे से ही जमा होती रही है. 

    श्रद्धाभाव से या मनौती पूर्ण होने पर लोग नकदी, आभूषण आदि स्वेच्छा से अर्पित करते हैं. ऐसा करने से उन्हें मानसिक संतोष होता है. अब यह मंदिर के विश्वस्तों या ट्रस्टियों का कर्तव्य है कि इस धन राशि का समाज व देश के हित में कैसा उपयोग करें. पूजा, उत्सव, अनुष्ठान, कर्मचारियों के वेतन, धर्मस्थल को सुविधायुक्त व आकर्षक बनाने के बाद भी यदि बड़ी रकम बचती है तो उसका उपयोग समाज के कल्याण और उन्नयन के लिए होना चाहिए. राष्ट्र के विकास में भी इससे योगदान दिया जा सकता है. 

    तिरूपति बालाजी या भगवान वेंकटेश्वर मंदिर का संचालन करनेवाले तिरूमला तिरूपति देवस्थानम (टीटीडी) के पास ढाई लाख करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति है. मंदर में नकद धन राशि और स्वर्ण के रूप में निरंतर चढ़ावा आता रहता है. नोट गिननेवाली मशीनों के साथ ही बड़ा स्टाफ चढ़ावे को स्वीकार करने के लिए तैनात रहता है. कई सरकारी व निजी बैंकों में टीटीडी की सावधि जमा 30 सितंबर 2022 को 15,938 करोड़ रुपए को पार कर गई. इसी तरह देवस्थानम द्वारा ‘बैंकों में रखा गया सोना 2019 के 7.3 टन से बढ़कर 30 सितंबर 2022 को 10.25 टन हो गया. टीटीडी को बैंकों में जमा नकदी पर ब्याज के रूप में 668 करोड़ रुपए से अधिक प्राप्त हुए. 

    मंदिर में श्रद्धालुओं से नकदी के रूप में लगभग 1000 करोड़ रुपए का चढ़ावा आने का भी अनुमान है. रकम का यह प्रवाह निरंतर जारी है. ऐसे में क्यों न समाज का धन समाज को रचनात्मक और लोककल्याणकारी प्रोजेक्ट के रूप में लौटाया जाए! इससे स्कूल, अस्पताल, अनाथालय व शेल्टर होम खोले जाएं. निराधार महिलाओं के लिए रोजगार प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाएं, दुर्गम व आदिवासी इलाकों का कायाकल्प किया जाए. जहां जरूरी हो वहां नलों या पेयजल आपूर्ति और बिजली की व्यवस्था की जाएं. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास जैसे उपक्रमों में पहल लेते हुए इस धन का उपयोग किया जाएं. 

    गुरूद्वारों में मुफ्त लंगर की व्यवस्था है. भूखे को भोजन देना और प्यासे को पानी पिलाना बड़े पुण्य का काम है. ऐसी व्यवस्था का विस्तार तिरूपति मंदिर कर सकता है. गरीबों के लिए ऊचे दर्जे के चैरिटेबल हास्पिटल बनाए जा सकते हें. ऐसा विश्वविद्यालय बनाया जा सकता है जो विदेश की नामी यूनिवर्सिटी या संस्थान को टक्कर दे सके. यह तिरूपति मंदिर की धनराशि का सही उपयोग होगा.