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हैरत की बात है कि नए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) (GST)को लागू करने से राजस्व में आने वाली कमी के लिए राज्यों को मुआवजा (कम्पेनसेशन) देने के अपने वादे से केंद्र सरकार पीछे हट रही है. वित्त मंत्री ने संकट में फंसे राज्यों को 2 विकल्प दिए हैं कि या तो वे इस कमी के लिए केंद्र से उधार लेकर भुगतान करें अथवा राज्य खुद भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India)से उधार लें. इन दोनों विकल्पों पर विचार करने के लिए राज्यों ने एक सप्ताह का समय मांगा है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण(Nirmala sitharaman)ने कहा कि कोविड-19 (Covid-19) की वजह से जीएसटी कलेक्शन कम हुआ है. उन्होंने कोविड को ‘एक्ट आफ गॉड’ (ईश्वरीय आपदा) बताते हुए कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में जीएसटी संकलन में 2.35 लाख करोड़ रुपए की कमी रह सकती है. इसमें से केवल 97,000 करोड़ रुपए की कमी जीएसटी लागू करने से होगी जबकि शेष राशि का शार्टफॉल कोरोना महामारी के कारण होगा. वित्त सचिव ने स्वीकार किया कि राज्यों के जीएसटी कम्पेनसेशन के लिए अप्रैल से जुलाई अवधि का 1.5 लाख करोड़ रुपए बकाया है. राज्यों को मई, जून, जुलाई और अगस्त इन 4 महीनों का मुआवजा नहीं मिला है. केंद्र सरकार ने वित्त मामलों की स्थायी समिति को बताया कि उसके पास राज्यों को मुआवजा देने के लिए पैसे नहीं हैं.

संविधान के 101वें संशोधन के जरिए जीएसटी लागू किया गया जिसमें कहा गया था कि जीएसटी कौंसिल की सिफारिश पर कानूनी तौर पर उन राज्यों को 5 वर्षों तक मुआवजा दिया जाएगा जिन्हें जीएसटी लागू करने से राजस्व का नुकसान होगा. इस उद्देश्य से पारित किए गए कानून में आय के स्रोत के रूप में अधिभार (सेस) लागू किया गया परंतु कहीं भी ऐसा नहीं कहा गया कि इस अधिभार से होने वाली कमाई से ही मुआवजा दिया जाएगा. जब सरकार ने राज्यों को जीएसटी में होने वाली कमी के लिए मुआवजा देने के लिए कोयला खनन पर ग्रीन सेस लगाने का निर्णय लिया तो उसने इस सिद्धांत को स्वीकार किया कि राजस्व में कमी की प्रतिपूर्ति का कम्पेनसेशन सेस एकमात्र साधन नहीं है.

आखिर क्या अर्थ है मुआवजे का

क्या कभी किसी ने सुना है कि किसी घायल व्यक्ति ने उसे पहुंची चोट के लिए उधार लेकर मुआवजा हासिल किया? बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि राज्यों की राजस्व की कमी के लिए मुआवजा देने की नैतिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है.

अजीत ने भी सुनाई खरी-खरी

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री अजीत पवार ने कहा कि जीएसटी का हिस्सा और बकाया रकम राज्यों को समय पर देने और उन्हें संकट से उबारने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने स्वीकार की है इसलिए राज्यों को तय वक्त पर नुकसान भरपाई देने का दायित्व केंद्र पर है. वह इसके लिए कर्ज ले क्योंकि राज्यों की तुलना में केंद्र सरकार को कम ब्याज पर कर्ज उपलब्ध होता है. अजीत ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर की नुकसान भरपाई के तौर पर केंद्र सरकार द्वारा महाराष्ट्र को दी जाने वाली रकम जुलाई 2020 तक 22,534 करोड़ रुपए होती है जोकि अब तक महाराष्ट्र को नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि अगर रकम समय पर नहीं मिली और इसी तरह लंबित होती रही तो डर है कि 2 वर्ष में यह 1 लाख करोड़ तक पहुंच जाएगी.

पुनर्भुगतान कौन करेगा

जीएसटी घाटे की पूर्ति के लिए केंद्र या राज्य कोई भी कर्ज ले, उसमें सार्वजनिक क्षेत्र पर ही कर्ज का बोझ बढ़ेगा. सवाल यह है कि कर्ज की अदायगी कौन करेगा? केंद्र सरकार को विभिन्न टैक्सों की वजह से काफी आय होती है. उसकी कर्ज लेने की क्षमता भी अधिक है. इसके विपरीत राज्यों को खर्च अधिक करना पड़ता है, खास तौर पर सामाजिक क्षेत्रों में व्यय ज्यादा है. राज्यों पर अतिरिक्त कर्ज का बोझ लादने से उनकी अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर पड़ेगा. अच्छे संघीय संबंधों की खातिर यही उचित होगा कि राज्यों को कर्ज लेने के लिए बाध्य न किया जाए. जीएसटी कलेक्शन में आई कमी को पूरा करने के लिए केंद्र ही कर्ज ले.