सारे मर्ज की एक ही दवा, चलने लगी चुनावी हवा, बयानों का गर्म तवा

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज नेतागण कुछ इस अंदाज में बयानबाजी कर रहे है जैसे चुनाव सिर पर आ गया हो. क्या वे मार्च-अप्रैल तक इंतजार नहीं कर सकते. अभी से चुनावी हवा क्यों चलने लगी है? वैसे आपको क्या लगता है? विधानसभा चुनाव के समय हवा का रूख किस तरफ रहेगा? किसान आंदोलन का चुनाव पर क्या असर पड़ेगा? हवा के दबाव के बारे में कुछ बताइए’’ हमने कहा, ‘‘हवा कभी दिखाई नहीं देती. जो चीज दिखाई न दे, उसके बारे में क्या बताएं? हवा सिर्फ महसूस की जाती है. हवा न हो तो वायुमंडल ही न हो. देहात के लोग भी जानते हैं कि नीम के झाड़ की हवा फायदेमंद रहती है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम आपसे चुनावी हवा के बारे में पूछ रहे हैं. वह किसके पक्ष में बह रही है?’’ हमने कहा, ‘‘हवा हमेशा मिश्रित होती है. उसमें हर प्रकार की गैस ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रोजन, हीलियम, क्लोरीन, अमोनिया, मिथेन पाई जाती है आप जो पानी पीते हैं वह भी हाईड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलने से बना हुआ है. मनुष्य सहित सभी जीवधारी हवा में से प्राणवायु या ऑक्सीजन लेते हैं जबकि पेड़-पौधों को कार्बन डाई आक्साई चाहिए!’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आपको चुनावी हवा के बारे में बताना है या नहीं?’’हमने कहा,‘‘चुनावी हवा कभी आम चुनाव में चलती है तो कभी उपचुनाव में. ऐसी हवा पंचायत, जिला परिषद, नगरपालिका से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी जोर-शोर से चलती है. चुनावी हवा नेताओं के लिए प्राणवायु का काम करती है बशर्ते वह उनके पक्ष में चले. इस चुनावी हवा में वादों की गुलाबी सुगंध समाई रहती है. इसमें सम्मोहन के इत्र की खुशबू होती है जिस पार्टी की चुनावी हवा में घनत्व ज्यादा होता है वह वोटों की मानसूनी बारिश करवा देती है. वह जनमानस को छूते हुए ईवीएम में समा जाती है. आगे चलकर नतीजे ही बताते हैं कि हवा किसके पक्ष में थी.’’