पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, देश की सबसे बड़ी अदालत ने अजीत पवार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि वह शरद पवार के नाम और फोटो का उपयोग करना बंद करें तथा अपने दम पर राजनीति करें। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?”
हमने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल सही कहा कि सिर्फ चुनाव में चाचा की जरूरत पड़ती है, बाद में नहीं! चाचा शब्द से हमें अनुप्रास अलंकार का एक वाक्य ध्यान में आया जिसे बार-बार जल्दी-जल्दी बोल पाना कठिन है। वह वाक्य है- चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदनी चौक में चांदी के चम्मच से चटनी चटाई!”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, यहां बात चंदू के चाचा की नहीं, अजीत पवार के चाचा की हो रही है। अजीत ने एनसीपी तोड़कर शिवसेना व बीजेपी से जोड़तोड़ कर ली और डिप्टी सीएम बन गए। अधिकांश विधायक भी उनके साथ आ गए। इतने पर भी वह अपने मतलब के लिए चाचा की फोटो का इस्तेमाल करते हैं। “
हमने कहा, “राजनीतिक नाता तोड़ने से क्या खून के रिश्ते खत्म हो जाते हैं? लहू हमेशा लहू को पुकारता है। लोग घर में अपने बड़े-बुजुर्गों के फोटो लगाते हैं। अजीत पवार भी चाचा के प्रति श्रद्धा जताने अपने दम पर चुनाव लड़ो, चाचा कानाम, पोटो लगाता बंदकरी! के लिए उनकी तस्वीर का इस्तेमाल कर रहे हैं। “
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, यह श्रद्धा नहीं, बल्कि मतलबपरस्ती है। आपने ‘वक्त पड़ा बांका’ वाला मुहावरा सुना होगा। लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए कुछ भी करते हैं। ”
हमने कहा, “तस्वीर को लेकर कितने ही फिल्मी गीत हैं जैसे कि तस्वीर बनाता हूं, तस्वीर नहीं बनती! तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला ना सकेगी ! सीनियर पवार भी पूछ सकते हैं- मेरी तस्वीर लेकर क्या करोगे, तुम मेरी तस्वीर लेकर, लुटी जागीर लेकर !”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, जब सच्चा प्रेम हो तो कलाकार तस्वीर बनाते समय गाता है तस्वीर बनाता हूं तेरी खूने- जिगर से, हाय खूने-जिगर से, देखा है तुझे मैंने मोहब्बत की नजर से!”
हमने कहा, “यहां मोहब्बत नहीं, मतलब और महत्वाकांक्षा का मामला है। चाचा ने पार्टी को खड़ी करने में मेहनत की और भतीजे ने पकी पकाई खीर को हजम करने की ठान ली। राजवंशों का इतिहास हो या राजनीति का मंजर, उत्तराधिकार छीनने के लिए मारा जाता है पीठ पर खंजर ! रही बात फोटो इस्तेमाल करने की, तो महात्मा गांधी के आदर्शों की मट्टीपलीद करनेवाले भी बापू की तस्वीर का उपयोग कर ही रहे हैं। “