पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, चीन आक्रामक रवैय दिखाते हुए मिसाइलें दाग रहा है लेकिन हमारी राजनीति धनुष-बाण में ही उलझी हुई है. शिवसेना का शिंदे गुट धनुष-बाण पर अपना दावा कर रहा है. उसने मांग की है कि उसे यह चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाए.’’
हमने कहा, ‘‘भारतीय संस्कृति में धनुष-बाण का हमेशा से महत्व रहा है. भगवान राम ने सहजता से शिव धनुष को उठाकर कमान चढ़ाई और तोड़ दिया. यह ऐसा भारी धनुष था जिसे रावण सहित सारे राजा हिला भी न पाए थे. धनुष राम को देना चाहा जो कि उनके पास अपने आप ही चला गया. परशुराम समझ गए कि उनका अवतार कार्य पूरा हो गया और राम का कार्य शुरू हो गया.
राम बाण से ही रावण मारा गया. दूसरे महान धनुर्धर अर्जुन थे जो चिड़िया की आंख पर निशाना लगा सकते थे. द्रोपदी के स्वयंवर में उन्होंने अपनी धनुर्विद्या का चमत्कार दिखाया था. एकलव्य ऐसे धनुर्धर था जिसको द्रोणाचार्य ने अपनी कोचिंग क्लास में एडमिशन नहीं दिया था. इसलिए द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उसके सामने अभ्यास करते हुए वह महान धनुर्धर बन गया. द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में एकलव्य का अंगूठा मांग लिया ताकि वह कभी धनुष न चला सके.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, राजा दशरथ शब्दभेदी बाण चलाना जानते थे. उन्होंने यह समझकर कि हाथी पानी पी रहा है, शब्दभेदी बाण चलाकर जिससे अपने प्यासे माता-पिता के लिए पानी भर रहे श्रवणकुमार की मृत्यु हो गई थी. इसी तरह पृथ्वीराज चौहान को भी शब्दभेदी बाण चलाना आता था. गजनी ले जाकर आंख फोड़ दिए जाने के बावजूद उन्होंने ऐसा बाण चलाया जो लोहे के 7 तवे छेद कर सीधे सुलतान मोहम्मद गोरी की छाती में जा धंसा.’’
हमने कहा, ‘‘शायर अकबर इलाहाबादी ने धनुष-बाण से अखबार को ताकतवर बताते हुए शेर लिखा था- खींचो ना कमानों को, न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो.’’