सास-सुसर की नहीं दरकार, लड़कियों को नापसंद संयुक्त परिवार

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, क्या जमाना आ गया! वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश सारे विश्व को देनेवाला भारत आज इस स्थिति में आ पहुंचा है कि लड़कियों को शादी के बाद पति का कुटुम्ब या परिवार भी नहीं चाहिए. एक सर्वे के अनुसार 64 प्रतिशत युवतियां ज्वाइंट फैमिली के खिलाफ हैं. उन्हें सास, ससुर, ननद, जेठ, जेठानी, देवर, देवरानी वगैरह कोई भी नहीं चाहिए. वे सिर्फ अपने पति के साथ अपने सपनों का संसार बसाना चाहती हैं.’’ 

    हमने कहा, ‘‘यूरोप-अमेरिका में भी तो यही है. वाइफ हसबैंड और 2 किड्स यही परिवार माना जाता है. ऐसे संयुक्त परिवार धीरे-धीरे लुप्त होते चले जा रहे हैं जिनमें 3-4 पीढ़ियां एक छत के नीचे बड़ी सहजता और आत्मीयता से रहा करती थीं और जहां दादा-दादी अपने पोते और पड़पोते तक को गोद में खिलाया करते थे. अब कमाई बढ़ गई है लेकिन लोगों का दिल छोटा होता जा रहा है.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इसे जरा दूसरे पहलू से सोचिए. आज लड़कियां भी सर्विस करती हैं. यदि बड़ा परिवार होगा तो उनसे नौकरी के साथ घरेलू कामकाज की भी उम्मीद रहेगी. इतने बड़े परिवार के लिए रोज-रोज नाश्ता, खाना बनाना तथा छोटे-बड़ों की जिम्मेदारी निभाना, कोई बीमार हो तो उसकी देखभाल करना कोई मामूली बात नहीं है. पुराने जमाने के संयुक्त परिवारों में तो बहुओं की जिंदगी चूल्हे-चौके में ही खप गई. उनकी अपनी कोई इच्छा-आकांक्षा नहीं थी. रही भी होगी तो दबा दी गई. 

    अब लड़कियां काफी पढ़ लिख गई हैं और अपने पैरों पर खड़ी हैं. वे अपने अरमानों का गला घोंटकर बड़े संयुक्त परिवार में सहजता से नहीं रह सकतीं. उन्हें अपनी प्राइवेसी और आजादी चाहिए. इसलिए पुणे-मुंबई जैसे शहरों में लड़कियां उसे देखने आए लड़के से बेझिझक सीधा सवाल करती है कि परिवार में कितने लोग हैं. घर कितना बड़ा है? शादी के बाद हम अकेले रहेंगे क्या? मैं अपनी सैलरी अपने माता-पिता को दूंगी तो चलेगा क्या? लड़के ने शर्त मानी तो शादी करती हैं.’’ हमने कहा, परिवार इसलिए भी छोटे हो गए हैं क्योंकि नौकरी के लिए घर से दूर रहना पड़ता है. वहां परिजनों की तब याद आती है जब पत्नी बीमार पड़ जाए या मां बनने वाली हो. ऐसे वक्त माता-पिता को सहारे के लिए बुला लिया जाता है.’’