nishanebaaz Can give full cooperation, film industry will teach history

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पड़ोसी ने हमसे कहा,‘‘निशानेबाज, एनसीईआरटी ने इतिहास की पढ़ाई संक्षिप्त कर दी है. उसमें से मुगल इंडिया, सांप्रदायिकक दंगे, हिंदू अतिवादियों के प्रति महात्मा गांधी की नापसंदगी, इमरजेंसी आदि को पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है. अब यह बताइए कि जिन्हें यह सब बातें जाननी और पढ़नी हैं, ऐसे जिज्ञासु छात्र क्या करेंगे?’’

हमने कहा, ‘‘जब भी कोर्स छोटा किया जाता है, विद्यार्थी खुश होते हैं. उन्हें राहत मिलती हैं. ज्यादा पढ़ने वाला किताबी कीड़ा बन जाता है और प्रैक्टिकल ज्ञान से वंचित रहता है. खुद महात्मा गंधीने नई तालीम शुरू करवाई थी जिसमें भाषा का ज्ञान तथा प्रारंभिक गणित सीख लेना पर्याप्त था. उन्होंने हुनर पर जोर दिया था ताकि लोग अपनी रोजी रोटी कमा सकें. लिखना-पढ़ना और हिसाब करना आ गया तो फिर ज्यादा पढ़ने की जरूरत ही क्या? जो व्यक्ति ज्यादा पढ़ता है वह शारीरिक श्रम से जी चुराने लगता है. किसान, मजदूर इसलिए मेहनती रहते हैं क्योंकि वे कम पढ़े-लिखे होते हैं.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, ज्ञान के प्रवाह को रोकना उचित नहीं है. इतने स्कूल, महाविद्यालय और यूनिवर्सिटी किसलिए हैं? इतिहास पढ़कर लोग अतीत में झांकते है और अपनी जड़ों को समझते हैं. इतिहास से सबक लेने वाला जीवन में गलतिया करने से बचता है. हमें बताइए कि जिस विद्यार्थी को मुगल हिस्ट्री पढ़नी है, वह क्या करेगा?’’

हमने कहा, ‘‘उसकी मदद फिल्मोद्योग कर सकता है. ऐसे विद्यार्थियों को बीना राय, प्रदीप कुमार की फिल्म अनारकली, के. आसिफ की मुगल-ए-आजम दिखाई जाए. गीत-संगीत के साथ वे अकबर, शाहजादा सलीम और अनारकली के बारे में जान लेंगे. उन्हें जोधा-अकबर भी दिखाई जा सकती है. शाहजहां और मुमताज महल की प्रेमकथा जानने के लिए वे फिल्म ताजमहल देख सकते हैं. इसे देखने के बाद छात्र जो वादा किया है, निभाना पड़ेगा गीत गुनगुनाने लगेंगे. विद्यार्थियों को रणबीर कपूर के परदादा पृथ्वीराज कपूर मुगल-ए-आजम के रूप में नजर आएंगे. सोहराब मोदी की ऐतिहासिक फिल्में भी उनका मार्गदर्शन करेंगी.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, लैला-मजनूं, शीरीं फरहाद और हीर-रांझा जैसी फिल्में प्रेम का संदेश दे सकती हैं. वे बाहुबली देखने के बाद इस प्रश्न का उत्तर जान सकते हैं कि कटप्पा ने — को क्यों मारा?’’