पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, पिछले दिनों पंजाब दौरे पर गए राहुल गांधी की जेब कट गई. उस समय उनके आसपास मुख्यमंत्री चरणजीतसिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोतसिंह सिद्धू थे.’’
हमने कहा, ‘‘पास में चाहे जो भी रहे हों, राहुल अपने लोगों पर शक नहीं कर सकते. राजनीति में गलाकाट प्रतिस्पर्धा हो सकती है लेकिन जेब नहीं काटी जाती. वैसे राहुल की जेब में होगा भी क्या? आपको याद होगा कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश में नोटबंदी लागू की थी तब राहुल गांधी ने अपने कुर्ते की फटी जेब दिखाई थी. यह तस्वीर अखबारों में छपी थी.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘कांग्रेस महात्मा गांधी की विरासत का नाम लेती है लेकिन लंगोटी पहनने वाले गांधी के पास कोई जेब नहीं थी, फिर भी उनके तीसरे दर्जे के रेल टिकट और अन्य सारे खर्च का इंतजाम अप्रत्यक्ष रूप से हो ही जाता था. नेताओं को वैसे भी जेब रखने की कोई आवश्यकता नहीं है. पार्टी कार्यकर्ता और हितैषी किसलिए हैं! ‘मित्रों’ की जेब भरी रहे, इतना काफी है.’’
हमने कहा, ‘‘हमारे देश में जेब को महत्व दिया जाता रहा है तभी तो औरंगजेब और जेबुन्निसा जैसे ऐतिहासिक पात्र हुए हैं. जेब है तभी तो जेबकतरों का अस्तित्व है. जो छुपाकर रकम ले जाना चाहते हैं, वे अंडरवियर में भी चोर खीसा या ‘गुप्त जेब’ बनवाते हैं. किसकी जेब में क्या है, कोई नहीं जानता. वास्तुशास्त्र के मुताबिक जेब में पुरानी रसीदें, अनावश्यक कागजात नहीं रखने चाहिए. रिश्वतखोर अफसरों की पत्नियां घर पहुंचते ही अपने पति की जेब की तलाशी ले डालती हैं कि आज कितनी रकम लेकर आए.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कुछ बगावती व असंतुष्ट नेता बार-बार कहते हैं कि मुझे किसी का डर नहीं है, मैं अपनी जेब में इस्तीफा लेकर घूमता रहता हूं.’’
हमने कहा, ‘‘लोकतंत्र ने पक्ष-विपक्ष के हर नेता को अवसर दिया है कि वह अपनी जेब ही नहीं, झोली भी अच्छी तरह भर ले. जो लोग बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे का समर्थन कर रहे हैं, वे भी अपनी जेब में गांधी की तस्वीर वाले नोट मजे से रखते हैं.’’