The depth of the memories of the past, the memory of the old Parliament House

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, देशवासियों को औपनिवेशिक काल या गुलामी के प्रतीकों को भूलना होगा. ताजमहल मुगल काल की याद दिलाता है तो कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल और पुराना संसद भवन ब्रिटिशकाल से जुड़े प्रतीक रहे हैं. इसलिए जो नवीनता लाई जा रही है उस पर गर्व कीजिए.’’ हमने कहा, ‘‘पुराने संसद भवन से कितनी ही स्मृतियां जुड़ी हैं. वहां आजादी के बेला में प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने अपना प्रसिद्ध हायस्ट विद डेस्टिनी भाषण दिया था जिसकी अब्राहम लिंकन के गेटिसबर्ग स्पीच से तुलना की जाती है. उसी पुरानी संसद में नेहरू और लोहिया की बहस हुआ करती थी. नेहरू ने कहा था कि हर भारतवासी की आमदनी 15 आना रोज है जबकि डा. लोहिया ने सिद्ध कर दिया था कि यह आय सिर्फ 3 आना प्रति दिन है. वहां लंबी-लंबी संसदीय बहस हुआ करती थी जिसमें भूपेश गुप्ता, फिरोज गांधी, मीनू मसानी, पीलू मोदी, एचवी कामथ, सोमनाथ चटर्जी, अटलबिहारी वाजपेयी, हीरेन मुखर्जी, मधु दंडवते, मधु लिमये जैसे सांसद तथ्यों के साथ ओजपूर्ण भाषण दिया करते थे.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबा अब संसद में बहस नहीं बल्कि व्यवधान और बहिर्गमन होता है. मेजारिटी वाली मोदी सरकार बिना किसी चर्चा या बहस के 4 मिनट में बिल पास करा लेती है. किसान बिल ऐसे ही तत्काल पारित किए गए थे और वैसे ही एक झटके में वापस ले लिए गए. विपक्ष का कहना है कि उसके नेताओं का माइक बंद कर उन्हें बोलने नहीं दिया जाता. इसलिए बहसवाली पार्लियामेंट को भूल जाइए. ऐसे ही विधेयकों को अब चयन समिति या सिलेक्ट कमेटी के पास भी नहीं भेजा जाता. पुरानी संसदीय प्रणाली और पुराने संसद भवन को अतीत या भूतकाल मान लीजिए. पुराना संसद भवन गोलाकार होने की वजह से वास्तु की दृष्टि से सही नहीं था. वहां 2001 में आतंकी हमला भी हुआ था और फिर 2020 में किसानों ने उस भवन के सामने आंदोलन भी किया था. अब हमारी अपनी श्रेष्ठ वास्तुकला के साथ नई संसद बनी है. ऐसे मौके पर पीएम मोदी का कविहृदय जाग उठा. उन्होंने कविता सुनाई- मुक्त मातृभूमि को नवीन पान चाहिए. नवीन पर्व के लिए नवीन प्राण चाहिए. मुक्त गीत हो रहा नवीन राग चाहिए.’’ हमने कहा, ‘‘जब चोल राजवंश के सेंगोल का अवतरण हो गया तो पुरानी गोल पार्लियामेंट को भूल जाना ही अच्छा.’’